भारत को यूरेशिया के लिए एक नए एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता

अपनी समुद्री भू–राजनीति के एक भाग के रूप में हिंद-प्रशांत की ओर राजनीतिक तथा संस्थागत रुचि उत्पन्न करने में भारत की सफलता के पश्चात्, यह अनुभव किया गया है कि भारत को यूरेशिया के प्रति अपनी महाद्वीपीय रणनीति का पुनः मूल्यांकन करना चाहिए।

यूरेशियाई क्षेत्र के बारे में

  • इसे भौगोलिक रूप से यूरेशियाई प्लेट द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। यह अधिकांश यूरोप और एशिया को शामिल करता है।
  • ज्ञातव्य है कि इस क्षेत्र की संरचना के संबंध में एक अंतर्राष्ट्रीय सहमति की कमी है।
  • उदाहरण के लिए रूस हेतु, पूर्व सोवियत संघ राज्यक्षेत्र यूरेशिया का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि अन्य देश इसके भागों जैसे मध्य एशिया, वृहत मध्य पूर्व आदि को यूरेशिया के अंतर्गत मानते हैं।

भारत के लिए यूरेशिया का महत्व

  • यह क्षेत्र कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, कपास, स्वर्ण, तांबा, एल्युमीनियम और लोहे जैसे खनिजों से समृद्ध है।
  • यह रणनीतिक रूप से यूरोप और एशिया के मध्य पहुंच बिंदु के रूप में अवस्थित है।
  • चीनी प्रभाव को बाधित करने के अतिरिक्त, यह भारत को इस क्षेत्र में शत्रुतापूर्ण गठबंधनों (जैसे, तुर्की-पाकिस्तान गठबंधन) को संतुलित करने में सहायता करेगा।

यूरेशिया के प्रति भारतीय रणनीति में निम्नलिखित बिंदुओं को शामिल करना चाहिए:

  • यूरोपीय संघ और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) दोनों के साथ अधिक संलग्नता होनी चाहिए।
  • रूस के साथ यूरेशियाई सुरक्षा वार्ता को तीव्र किया जाना चाहिए।
  • भौगोलिक अलगाव को दूर करने तथा अफगानिस्तान, मध्य एशिया और खाड़ी क्षेत्र के भविष्य में एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए ईरान एवं अरब के साथ सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ।

स्रोत – पी आई बी

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