भारत में हाइपरसोनिक मिसाइल प्रौद्योगिकी विकसित होगी
हाल ही में रक्षा मंत्री ने भारत में हाइपरसोनिक मिसाइल प्रौद्योगिकी विकसित करने का आग्रह किया है।
यह अपेक्षा की जा रही है कि भारत चार वर्ष के भीतर मध्यम से लंबी दूरी की मारक क्षमताओं के साथ हाइपरसोनिक हथियार प्रणाली प्राप्त करने में सक्षम हो जाएगा।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने सितंबर 2020 में एक हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटेड व्हीकल (HSTDV) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया था। साथ ही, अपनी हाइपरसोनिक एयर-ब्रीदिंग स्कैमजेट तकनीक का भी प्रदर्शन किया था।
प्रौद्योगिकी के विकास का महत्व इस क्षेत्र में चीन, रूस और अमेरिका द्वारा किए गए विकास की पृष्ठभूमि से संबंधित है।
हाइपरसोनिक तकनीक के बारे में
- हाइपरसोनिक लगभग मैक 5 या कम से कम 1.6 कि.मी. प्रति सेकंड की गति को परिभाषित करता है।
- मैक संख्या वायु में ध्वनि की गति के साथ तुलना में एक विमान की गति का वर्णन करता है।
- हालांकि वे बैलिस्टिक मिसाइलों की तुलना में धीमी होती हैं, किंतु उन्हें रोकना कठिन है और इनमें तीव्र पैंतरेबाजी क्षमता भी होती है।
- वे स्कैमजेट तकनीक (scramjet technology) का उपयोग करती हैं, जो एक प्रकार की वायु श्वसन आधारित प्रणोदन प्रणाली है।
हाइपरसोनिक प्लेटफॉर्म के दो प्रकार हैं:
हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलः यह अपनी उड़ान के दौरान रॉकेट या जेट प्रणोदक का उपयोग करती है। इसे मौजूदा क्रूज मिसाइलों के तीव्र संस्करण के रूप में माना जाता है।
हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV): ये मिसाइलें अपने लक्ष्य की ओर लॉन्च होने से पहले एक पारंपरिक रॉकेट पर पहले वायुमंडल में जाती हैं।
विशेष: संबंधित सुर्खियों में, DRDO ने ओडिशा के तट पर APJ अब्दुल कलाम द्वीप से ‘अग्नि प्राइम’ मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है।
‘अग्नि प्राइम’ मिसाइल अग्नि श्रृंखला की छठी मिसाइल है। यह नई पीढ़ी की परमाणु-सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल है। इसकी रेंज 1,000–2,000 किलोमीटर है और इसे रेल या सड़क मार्ग से लॉन्च किया जा सकता है। इसे लंबे समय तक संग्रहीत किया जा सकता है और इसका परिवहन भी आसान है।
स्रोत – द हिन्दू