भारत में लैंडफिल प्रबंधन
हाल ही में उत्तरी दिल्ली के भलस्वा लैंडफिल में भीषण आग लग गई है। यह गाजीपुर और ओखला के साथ दिल्ली के प्रमुख डंप साइट्स में से एक है।
भारत में शहरी डंप साइट्स की समस्याएं –
- सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के अनुसार, भारत में वर्ष 2020 में 3,159 डंप साइट्स या लैंडफिल्स थे। इनमें 800 मिलियन टन अपशिष्ट था।
- ये डंप साइट्स मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें उत्सर्जित करती हैं। इससे बार-बार आग लगने की घटनाएं सामने आती हैं। इन घटनाओं से पार्टिकुलेट मैटर में 11% का योगदान होता है।
शहरी डंपसाइट्स के लिए प्रौद्योगिकियां
ट्रोमेल मशीनें: ये यांत्रिक छलनी मशीनें हैं, जो अपशिष्ट को निम्नलिखित तीन घटकों में पृथक करती हैं-
- प्लास्टिक और ईंधन के रूप में उपयोग किये जाने वाले दहनशील अपशिष्ट,
- निर्माण और भवनों के टूटने से उत्पन्न सामग्री, तथा
- समृद्ध मिट्टी और अक्रिय सामग्री।
- जैवोपचार (Bioremediation): इस प्रक्रिया में मिट्टी और आसपास के वातावरण में दूषित पदार्थों की विषाक्तता समाप्त करने के लिए सूक्ष्म जीवों या पादप एंजाइमों का उपयोग किया जाता है।
- बायोरिएक्टर लैंडफिल्सः इस प्रक्रिया में अपशिष्ट के अपघटन में बैक्टीरिया की मदद करने के लिए तरल पदार्थ मिलाया जाता है। इससे अपशिष्ट का अपघटन तेजी से होता है।
- डंपसाइट्स की बायो-माइनिंगः इसमें आमतौर पर जैवोपचार की सहायता ली जाती है। इस प्रक्रिया में सूक्ष्म जीवों की मदद से कार्बनिक अपशिष्ट का अपघटन होता है।
शहरी डंपसाइट्स का प्रबंधन-
- केंद्र सरकार ने वर्ष 2026 तक सभी शहरों को कचरा मुक्त बनाने के लिए स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-) 0 की शुरुआत की है।
- ऐसी डंपसाइट्स का समग्र प्रबंधन शहरी स्थानीय प्राधिकरणों के अंतर्गत आता है। ये ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के तहत उपनियम बना सकते हैं। इसके अतिरिक्त, अपशिष्ट के स्रोत पर ही अपशिष्ट की प्रकृति के अनुसार इसे अलग-अलग किया जा सकता है।
स्रोत – द हिंदू