भारत में बाल तस्करी (Child Trafficking) विश्व बाल श्रम निषेध दिवस
संयुक्त राष्ट्र-विश्व बाल श्रम निषेध दिवस 12 जून, 2023 को मनाया गया। इस वर्ष इस दिवस की थीम थी- “सभी के लिए सामाजिक न्याय बाल श्रम की समाप्ति” (Social Justice for All End Child Labour)।
- एक अनुमान के अनुसार विश्व में 16 करोड़ बच्चे जीवनयापन के लिए श्रम करते हैं । इसका आशय है कि लगभग हर 10 में से एक बच्चा स्कूल जाने की बजाय कहीं-न-कहीं मजदूरी कर रहा होता है ।
- बाल तस्करी कई रूपों में देखी जा सकती है, जैसे कि घरेलू श्रम; उद्योगों में जबरन बाल श्रम; भिक्षावृत्ति; मानव अंग व्यापार और वाणिज्यिक लैंगिक शोषण ।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार भारत में 2021 में श्रम, भिक्षावृत्ति और लैंगिक शोषण के लिए हर दिन आठ बच्चों की तस्करी की गई थी ।
बाल तस्करी के लिए निम्नलिखित कारण जिम्मेदार हैं:
- गरीबी एवं भुखमरी,रोजगार की कमी,जाति और समुदाय आधारित भेदभाव,
- ग्रामीण क्षेत्रों में अनुचित व्यवहार, तथा कोविड-19 महामारी, जलवायु परिवर्तन जैसे अन्य बाह्य कारण आदि ।
भारत में तस्करी-विरोधी कानून
- अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 : यह कानून अनैतिक व्यापार और देह व्यापार को रोकता है।
- आश्रम पद्धति (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 : यह कानून कमजोर वर्ग के लोगों के आर्थिक और शारीरिक शोषण को रोकने के लिए बंधुआ मजदूरी प्रणाली को समाप्त करता है।
- मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994: यह कानून मानव अंगों के वाणिज्यिक उपयोग को दंडनीय अपराध बनाता है।
- लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 : यह कानून लैंगिक अपराध, लैंगिक उत्पीड़न तथा पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से बच्चों को संरक्षण प्रदान करता है ।
स्रोत – हिन्दुस्तान टाइम्स