भारत में बंधुआ मजदूरी

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प्रश्नसमकालीन भारत में बंधुआ मजदूरी के अस्तित्व के अंतर्निहित कारणों पर चर्चा करते हुए, इसके निवारण के लिए किये गए प्रयासों पर भी चर्चा कीजिये। 30 October 2021

उत्तर –  बंयह एक ऐसा ऋणी-ऋणदाता संबंध भी है, जहाँ किसी मजदूर के ऋण का बोझ प्रायः उसके परिवार के सदस्यों को हस्तांतरित हो जाता है। बंधुआ मजदूरी की अवधि सामान्यतः अनिश्चित होती है और इसमें अवैध संविदात्मक अनुबंध शामिल होते हैं। यह अंतर्राष्ट्रीय कानून और अधिकांश घरेलू न्यायालयों में प्रतिबंधित होने के बावजूद आधुनिक दासता के सबसे प्रचलित रूपों में से एक है।

भारत में बंधुआ मजदूरी ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में प्रचलित है। समकालीन भारत में बंधुआ मजदूरी के प्रचलन के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  • आर्थिक कारण: जैसे- स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थिति, धार्मिक समारोह, विवाह इत्यादि गरीबों, भूमिहीनों आदि को स्थानीय साहूकारों, ठेकेदारों या नियोक्ताओं से प्रायः प्रतिकूल शर्तों पर ऋण या अग्रिम लेने के लिए प्रेरित करते हैं। ऋण चुकाने में असमर्थता देनदार या अक्सर परिवार के अन्य सदस्यों को नियोक्ता या ठेकेदार के लिए कम या बिना मजदूरी पर काम करने के लिए मजबूर कर सकती है जब तक कि ऋण चुकाया नहीं जाता है। आवश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त ऋण लिया जा सकता है और ऋण, ऋणग्रस्तता और शोषण में वृद्धि का एक अटूट चक्र बना सकता है।
  • राजनीतिक कारण: बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 जैसे कानून पारित करने के बावजूद, बंधुआ मजदूरी को पूरी तरह से समाप्त किया जाना बाकी है। बंधुआ मजदूरी की व्यापकता की पहचान करने के लिए 1978 के बाद से कोई राष्ट्रव्यापी सरकारी सर्वेक्षण नहीं किया गया है, हालांकि प्रत्येक जिले को ऐसे सर्वेक्षणों के लिए वित्तपोषित किया जाता है।
  • सामाजिक कारण: इन परिस्थितियों की उत्पत्ति और निरंतरता के लिए उत्तरदायी सामाजिक कारण हैं- जाति संरचना (बंधुआ मजदूर प्रमुख रूप से अनुसूचित जातियों से होते हैं), नृजातीयता, अशिक्षा, अन्यायपूर्ण सामाजिक संबंध आदि। ये सभी एक ऋणदाता और एक उधारकर्ता के मध्य आर्थिक लेन-देन को सामाजिक नियंत्रण और अधीनता के तंत्र में परिवर्तित करने की भूमिका का निर्वहन करते हैं।

उपरोक्त ज्ञात कारणों के अलावा, पीड़ितों के बचाव और पुनर्वास के लिए व्यावहारिक चुनौतियां मौजूद हैं, जैसे पर्याप्त पुनर्वास सेवाएं प्रदान करने में विफलता, मानव और वित्तीय संसाधनों की कमी, सीमित संगठनात्मक जवाबदेही और गैर सरकारी संगठनों, सरकार और अन्य हितधारकों के बीच बुनियादी ढांचे का निम्न स्तर।  इसके निवारण के लिए आवश्यक उपाय निम्नलिखित हैं:

  • ILO डोमेस्टिक वर्कर्स कन्वेंशन, 2011 को लागू करने और मानव तस्करी (निवारण, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, राष्ट्रीय घरेलू कामगार कार्य विनियमन और सामाजिक सुरक्षा विधेयक, 2016 जैसे कानूनों को पारित करने के माध्यम से विधायी ढांचे को सुदृढ़ बनाना।
  • केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं जैसे ‘बंधुआ मजदूर पुनर्वास योजना’ (2016 में संशोधित) के प्रभावी कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। यह मुक्त बंधुआ मजदूरों को तत्काल सहायता प्रदान करने के लिए जिला स्तर पर एक बंधुआ मजदूर पुनर्वास कोष के निर्माण का प्रावधान करता है। इस योजना में बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास, उनसे संबंधित सर्वेक्षण कराने आदि के संबंध में अन्य महत्वपूर्ण प्रावधान भी शामिल हैं।
  • ऋणग्रस्तता की पुनरावृत्ति को रोकना: माइक्रोफाइनेंस (माइक्रोक्रेडिट) तक पहुंच सुनिश्चित करके, भूमि सुधारों को लागू करने, पीडीएस को मजबूत करने, शिक्षा और स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने आदि के माध्यम से ऋणग्रस्तता की पुनरावृत्ति/पुनरावृत्ति को रोकना।
  • संवेदनशीलता और कार्य-उन्मुख: सभी स्तरों पर कार्यकर्ताओं को कार्य-उन्मुख दृष्टिकोण अपनाने के लिए संवेदनशील बनाना और उनके प्रशिक्षण के लिए एक विस्तृत कार्यक्रम की योजना बनाना।
  • आधुनिक दासता के सभी पीड़ितों के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना लागू करें जो विभिन्न संदर्भों में सीमा पार और दासता के स्थानीय रूपों की पहचान करती है।

उपर्युक्त सभी प्रयास बंधुआ मजदूरी की इस प्रतिगामी प्रणाली को समाप्त करने की दिशा में सहायक सिद्ध होंगे।

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