भारत में नैदानिक परीक्षण (Clinical Trials) के अवसर रिपोर्ट जारी
PwC इंडिया और यूएस-इंडिया चैंबर ऑफ कॉमर्स (USAIC) की रिपोर्ट के अनुसार नैदानिक परीक्षण करने के लिए भारत एक अनुकूल गंतव्य के रूप में उभर रहा है ।
‘भारत में नैदानिक परीक्षण (Clinical Trials) के अवसर’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में निम्नलिखित तथ्यों को रेखांकित किया गया है-
- समग्र नैदानिक परीक्षण में भारत की भागीदारी लगभग 3% है। हालांकि, सबसे अधिक प्रचलित बीमारियों जैसे- श्वसन संक्रमण, हृदय रोग आदि के वैश्विक बोझ में भारत की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत से अधिक है। यह भारत में शीर्ष फार्मा क्षेत्रक की क्षमता का उपयोग न किए जाने को दर्शाता है ।
- नैदानिक परीक्षण लोगों पर किए जाने वाले शोध अध्ययन होते हैं। इनके माध्यम से चिकित्सा, शल्य चिकित्सा या व्यवहार संबंधी हस्तक्षेपों का मूल्यांकन किया जाता है।
- ये परीक्षण औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940; भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद अधिनियम, 1956 तथा भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1970 द्वारा शासित होते हैं।
क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री-इंडिया (CTRI)
- क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री – इंडिया (CTRI) को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के राष्ट्रीय चिकित्सा सांख्यिकी संस्थान के साथ होस्ट किया गया है।
- CTRI को 2007 में लॉन्च किया गया था । यह भारत में किए गए नैदानिक परीक्षणों के पंजीकरण के लिए एक निःशुल्क और ऑनलाइन सार्वजनिक रिकॉर्ड प्रणाली है।
- इसके अतिरिक्त, CTRI उन देशों में किए जा रहे नैदानिक अध्ययनों को भी पंजीकृत करता है, जिनकी अपनी प्राथमिक रजिस्ट्री नहीं है ।
- इसे एक स्वैच्छिक उपाय के रूप में शुरू किया गया था। वर्ष 2009 से भारत के औषधि महानियंत्रक (DCGI) CTRI में परीक्षण पंजीकरण को अनिवार्य कर दिया है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने CTRI को प्राथमिक रजिस्ट्री के रूप में मान्यता दी है।
नैदानिक परीक्षण के नैतिक निहितार्थ
- साक्षरता का अभाव होने और कंपनियों द्वारा धोखेबाजी के माध्यम से ऐसे परीक्षणों की पूरी सच्चाई बताए बिना भाग लेने वालों की सहमति ले ली जाती है।
- नैदानिक परीक्षण ज्यादातर गरीबों पर किए जाते हैं । इस परीक्षण के परिणामस्वरूप अक्सर उन्हें ऐसा उपचार मिल जाता है, जिसे वे वहन नहीं कर सकते हैं।
स्रोत – इकोनॉमिक्स टाइम्स