Question – भारत में नीति निर्माण में अपने प्रबल प्रभाव के कारण सबसे शक्तिशाली कार्यालय के रूप में कार्य करने वाले प्रधान मंत्री कार्यालय से सम्बद्ध निहितार्थों पर चर्चा कीजिए। – 17 January 2021
Answer – प्रधानमंत्री कार्यालय महत्वता और इसकी जिम्मेदारियों की वजह से चर्चित है। इसे सचिवीय सहायता प्रदान करने के अनुच्छेद 77 (3) के प्रावधान के तहत एक निर्मित प्रशासनिक एजेंसी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसकी शुरूआत 1947 में प्रधानमंत्री पद के सचिव के रूप में हुयी थी तत्पश्चात् 1977 में पुर्न: नामित कर इसका नाम प्रधानमंत्री कार्यालय रखा गया। व्य़ापार आवंटन नियम 1961 के तहत इसे विभाग का दर्जा प्राप्त है। यह स्टाफ एजेंसी मुख्यत: भारत सरकार के शीर्ष स्तर पर निर्णय लेने में सहायता प्रदान करती है। लेकिन फिर भी इसके महत्व अतिरिक्त संवैधानिक निकाय के रूप में भी है।
स्वतंत्रता के समय, प्रधान मंत्री (PM) को सचिवीय सहायता प्रदान करने के लिए एक संविधानेत्तर और गैर-सांविधिक निकाय के रूप में प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने एक निम्न-प्रोफाइल निकाय के रूप में कार्य करना आरंभ किया। लेकिन दो दशकों से भी कम समय में PMO, नीति-निर्माण में अत्यधिक प्रभाव कारण एक सर्वाधिक शक्तिशाली संस्था के रूप में उभरा। सरकार के निर्णय-निर्माण में PMO द्वारा प्रधान भूमिका निभाने के इस विकास के निम्नलिखित लाभ हैं:
- यह अन्य मंत्रालयों को मार्गदर्शन प्रदान करके तथा विभिन्न अंतर और अंतरा-मंत्रालय स्तरीय विवादों का समाधान करके त्वरित निर्णय-निर्माण में सहायता करता है।
- शासन के मुद्दों की बढ़ती जटिलता और मंत्रालयों की बढ़ती संख्या के परिणामस्वरूप समन्वय का अभाव हो सकता है। इसलिए सशक्त PMO प्रभावी तरीके से इस प्रकार के परिदृश्य में समन्वय स्थापित कर सकता है।
- यह सूचना एकत्रित करता है, परामर्श देता है, आर्थिक और विदेश नीतियों सहित अन्य नीतियों को आरंभ करता है और उनके कार्यान्वयन का निरीक्षण भी करता है, इस प्रकार PMO प्रभावशीलता और जवाबदेही को सुनिश्चित करता है। .
- संवेदनशील मामलों को संचालित करने वाली एजेंसियां/संगठन जैसे कि RAW, ISRO आदि सीधे PMO को रिपोर्ट करते हैं, इस प्रकार उनके कार्य की विवेकशीलता बनी रहती है साथ ही उनके राजनीतिकरण की संभावना भी कम होती है।
हालांकि, PMO के इस भूमिका में उद्भव के साथ इससे संबद्ध जोखिम भी हैं जो निम्नलिखित हैं:
- यह एक ही कार्यालय के तहत शक्तियों को केंद्रित करता है, जिससे अन्य मंत्रालयों की अनदेखी होती है, जो संविधान में परिकल्पित सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत के खिलाफ है। यह बहस और विचार-विमर्श की संस्कृति को भी खतरे में डालता है, इस प्रकार निर्णय लेने की एक सत्तावादी शैली पेश करता है।
- यह कैबिनेट सचिवालय की शक्तियों का अधिक्रमण करता है, जिसे कैबिनेट से संबंधित सभी मामलों के केंद्र के रूप में परिकल्पित किया गया है और जिसे विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय का कार्य सौंपा गया है।
- पीएमओ में लिए गए फैसलों की जांच का अभाव है, क्योंकि यह खुद पीएम की अध्यक्षता वाली एक अतिरिक्त-संवैधानिक संस्था है, जिसमें प्रभावी जांच और संतुलन का अभाव है।
इस प्रकार, जबकि एक सशक्त PMO त्वरित निर्णय-निर्माण और नीतियों में निरंतरता लाता है, लेकिन यह विकेंद्रीकृत और विचारशील कामकाज की प्रकृति के अनुरूप नहीं है। इस संदर्भ में, प्रधानमंत्री को PMO और अन्य संस्थानों के मध्य संतुलन स्थापित करने का कार्य करना होता है, क्योंकि PMO को PM से अपना प्राधिकार प्राप्त होता है। वह अकेले ही यह निर्णय लेता है कि वह किस प्रकार और किस तरीके से कार्यालय का उपयोग करना चाहता/चाहती है।