Question – भारत में गैर सरकारी संगठनों के वित्तीयन को सम्बोधित करने हेतु वर्तमान विनियामक ढ़ाचें का परीक्षण कीजिए। – 5 January 2022
Answer –
गैर सरकारी संगठन
- एनजीओ का अर्थ होता है- गैर सरकारी संगठन। एनजीओ एक निजी संगठन होता है जो लोगों का दुख-दर्द दूर करने, निर्धनों के हितों का संवर्द्धन करने, पर्यावरण की रक्षा करने, बुनियादी सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने अथवा सामुदायिक विकास के लिये गतिविधियाँ चलाता है।
- वे गैर लाभकारी होते हैं, अर्थात् वे लाभ का वितरण अपने मालिकों और निदेशकों के बीच नहीं करते बल्कि प्राप्त लाभ को संगठन में ही लगाना होता है। वे किसी सार्वजनिक उद्देश्य को लक्षित होते हैं।
- गैर सरकारी संस्थाओं को विदेशी धन प्राप्त करने के लिये एफसीआरए, 2010 के अंतर्गत पंजीकृत होना पड़ता है या पूर्व अनुमति लेनी होती है।
- भारत में गैर सरकारी संगठनों की गतिविधियों पर नियंत्रण के लिये कोई एक विशेष कानून अथवा कोई शीर्ष संगठन नहीं है।
इंटेलिजेंस ब्यूरो की एक रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि एनजीओ ऐसी गतिविधियों में लिप्त हैं जो राष्ट्रीय हित के लिए प्रतिकूल हैं, सार्वजनिक हित को प्रभावित कर सकती हैं या देश की सुरक्षा, वैज्ञानिक, रणनीतिक या आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं।
रिपोर्ट ने उन्हें सरकार के विकास लक्ष्य की राह में एक बड़ी बाधा बताया है और आरोप लगाया है कि जीडीपी वृद्धि पर उनका 2-3 प्रतिशत प्रति वर्ष का नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
आईबी की रिपोर्ट के मुताबिक, कई विदेशी सहायता प्राप्त एनजीओ देश में अलगाववाद और माओवाद को हवा दे रहे हैं। बहुत सारा पैसा धर्मांतरण की ओर जा रहा है, खासकर आदिवासियों को ईसाई बनाने के लिए। उन पर भारत के विकास पथ को अस्थिर करने के लिए विदेशी शक्तियों द्वारा प्रॉक्सी के रूप में उपयोग करने का भी आरोप है, जैसे परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और खनन कार्यों के खिलाफ गैर सरकारी संगठनों द्वारा विरोध।
गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) की विदेशी फंडिंग कई देशों की सरकारों के लिए सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक रही है। भारत में विगत 6 वर्षों में लगभग 18,000 NGOs को विदेशी अंशदान प्राप्त करने की प्रदत्त अनुमति को निरस्त किया गया है।
NGOs के विदेशी वित्त पोषण के लिए नियामक ढांचा:
NGOs को प्राप्त विदेशी अंशदान को विदेशी अभिदाय (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010 के तहत विनियमित किया जाता है। यह अधिनियम:
- लाइसेंसिंग संबंधी आवश्यकताओं, प्राप्त अंशदान के प्रशासनिक व्यय हेतु उपयोग, उनके बैंक खातों की वैधता, उनकी धर्म परिवर्तन या सांप्रदायिक असामंजस्य संबंधी कार्य में असंलग्नता आदि को विनियमित करता है।
- व्यक्तियों के विशिष्ट वर्गों, जैसे- निर्वाचन प्रत्याशी, न्यायाधीश, पत्रकार आदि के लिए विदेशी अंशदान और उपहारों की स्वीकृति एवं उपयोग को प्रतिबंधित करता है।
- NGO’s के लिए विदेशी फंड की स्वीकृति, उपयोग और किए गए उपयोग संबंधी रिपोर्ट प्रस्तुत करने हेतु एक तंत्र की व्यवस्था करता है।
अतः FCRA विदेशी फंड की स्वीकृति और उपयोग को विनियमित करके भारत की संप्रभुता एवं अखंडता का अनुरक्षण, सार्वजनिक हित में वृद्धि तथा विधायिकाओं के निर्वाचन की स्वतंत्रता या निष्पक्षता सुनिश्चित करता है। हालांकि अधिनियम के संबंध में विभिन्न मुद्दे विद्यमान हैं:
- असहमति से विमुखता: विदेशी निधियों की स्वीकृति हेतु प्रतिबंधित व्यक्तियों की सूची में कार्टूनिस्टों के समावेश और ‘राजनीतिक प्रकृति के संगठन’ पदावली के उपयोग से राजनीतिक असहमति पर अंकुश आरोपित करने की मंशा प्रदर्शित होती है।
- असंगत दंड: वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत न करने, प्रमुख कर्मियों के परिवर्तन की गैर-रिपोर्टिंग आदि जैसे विभिन्न छोटे मुद्दों के कारण 18,000 से अधिक गैर सरकारी संगठनों के एफसीआरए लाइसेंस रद्द करना एक अनुचित दंड प्रतीत होता है।
- अति-नियमन: एफसीआरए नियम राज्य को विनियमन के प्रावधानों को मनमाने ढंग से लागू करने के लिए अनियंत्रित शक्तियां देते हैं और ये नियम भी विकास प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
- अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन न करना: संसाधनों तक पहुंच, विशेष रूप से विदेशी फंडिंग, एसोसिएशन की स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह अधिकार नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा के अनुरूप है और भारत इस समझौते का एक पक्ष है।
हालांकि एफसीआरए से संबंधित विभिन्न मुद्दे मौजूद हैं, लेकिन इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार और पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी के आरोपों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। सरकार द्वारा एक उपयुक्त नियामक ढांचा तैयार करने की आवश्यकता है, जिसके द्वारा प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने, भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने और प्रतिबंधों के आवेदन की प्रभावी निगरानी करने के प्रयास किए जाते हैं।