भारत में अफ्रीकन स्वाइन फीवर

भारत में अफ्रीकन स्वाइन फीवर (African Swine Fever)

हाल ही में, एशिया के छोटे सुअर फ़ार्म, ‘अफ्रीकन स्वाइन फीवर’ (African Swine Fever) के प्रकोप से अत्यधिक प्रभावित हुए हैं।

विदित हो कि भारत सहित कई देशों में, 70 % सुअर फार्मों का स्वामित्व छोटे किसानों के पास है।

चीन में होने वाले सम्पूर्ण सूअर-मांस उत्पादन का लगभग 98 % छोटे किसानों द्वारा उत्पादित किया जाता है। इन किसानों के पास सूअरों की संख्या 100 से भी कम होती है।

भारत में‘अफ्रीकन स्वाइन फीवर’ का प्रभाव:

  • अफ्रीकी स्वाइन फीवर लगभग 100 वर्षों से भी पुरानी बीमारी है, जो घरेलू सूअरों और जंगली सूअरों को संक्रमित करती है, इस बीमारी के संक्रमण से मृत्यु दर लगभग 100 % होती है। इस बीमारी से, वर्ष 2018 से विश्व के लगभग 1/3 सूअर मारे जा चुके हैं।
  • इस बीमारी का हालिया प्रसार भारत में अत्यधिक हो रहा है। भारत में मई 2020 से इससे संक्रमित मामले सामने आ रहे थे, किंतु पिछले एक माह में इनकी संख्या में जबर्दस्त विस्फोट हुआ है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, अफ्रीकी स्वाइन फीवर (ASF) की वजह से पूर्वोत्तर राज्यों के सूअर-मांस उत्पादन में 50 प्रतिशत की कमी हुई है।

अफ्रीकी स्वाइन फीवर (ASF) के बारे में:

  • ‘अफ्रीकी स्वाइन फीवर’(ASF) एक अत्यधिक संक्रामक और घातक पशु रोग है, यह घरेलू और जंगली सूअरों को संक्रमित करता है। इसके संक्रमण से सूअर एक प्रकार के तीव्र रक्तस्रावी बुखार (Hemorrhagic Fever) से ग्रसित होते है।
  • इस बीमारी को पहली बार 1920 के दशक में अफ्रीका में देखा गया था।इस बीमारी में मृत्यु दर 100 % के करीब होती है, और इस बुखार का कोई इलाज नहीं है।
  • इसके लिए अभी तक कोई भी टीके का आविष्कार नहीं किया गया है ,जिसके कारण संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए, संक्रमित जानवरों को ही मार दिया जाता है ताकि यह रोग अगले जानवरों में न फैले।

स्रोत – द हिन्दू

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