भारत-तालिबान वार्ता
हाल ही में भारत ने तालिबान के साथ वार्ता के लिए राजनयिकों का एक दल काबुल भेजा है।
राजनयिकों का यह दल तालिबान के वरिष्ठ सदस्यों से भेंट करेगा। साथ ही, यह दल अफगान लोगों की बीच मानवीय सहायता का उचित वितरण सुनिश्चित करेगा। इसके अलावा, तालिबान ने भारत से काबुल में भारतीय दूतावास फिर से खोलने का आग्रह किया है।
इससे पहले, भारत तालिबान के साथ किसी भी प्रकार की वार्ता के खिलाफ कड़ा रुख अपनाता रहा है। हालांकि, अपने स्वयं के भू-राजनीतिक और सामरिक हितों को देखते हुए, भारत तालिबान के साथ अपनी शर्तों पर संपर्क बना रहा है।
अफगानिस्तान के प्रति भारत का दृष्टिकोण सॉफ्ट पावर को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करने का रहा है। भारत ने अफगानिस्तान में पिछले कुछ दशकों में सहायता और पुनर्निर्माण गतिविधियों में लगभग 2 अरब डॉलर का निवेश किया है।
अफगानिस्तान के साथ भारत की विकास भागीदारी निम्नलिखित 5 स्तंभों द्वारा संचालित थी:
- मानवीय सहायताः खाद्यान्न, स्वास्थ्य सुविधाओं आदि की आपूर्ति।
- अवसंरचनाः सड़कों और राजमार्गों का निर्माण, बांधों का निर्माण (जैसे सलमा बांध) और ट्रांसमिशन लाइनों का सृजन।
- आर्थिक विकासः निजी निवेश और उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाओं को बढ़ावा देना।
- संपर्क: चाबहार बंदरगाह विकास, प्रत्यक्ष वायु मालभाड़ा गलियारा आदि के माध्यम से बाह्य संपर्क को बढ़ाना।
- भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) तथा अन्य पहलों के माध्यम से क्षमता निर्माण।
तालिबान शासन के साथ भारत की चिंताएं-
- अभिशासन (Governance) की बजाय शासन (rule) करने के तालिबान के दृष्टिकोण के कारण भारत को विकास और मानवीय सहायता पहुचाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- अफगानिस्तान आतंकवाद के लिए सुरक्षित शरणस्थल बन रहा है। संयुक्त राष्ट्र की हाल ही की एक रिपोर्ट के अनुसार जैश-ए-मोहम्मद अफगानिस्तान में प्रशिक्षण शिविर चला रहा है।
- महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को क्षति पहुंचाई जा रही है।
- अफगानिस्तान में पाकिस्तान और चीन का प्रभाव बढ़ रहा है।
- काबुल में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गयी है।
स्रोत –द हिन्दू