‘भारत के लिए भविष्य के सुपर फूड’ थीम पर राष्ट्रीय मोटा अनाज सम्मेलन आयोजित
हाल ही में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने ‘भारत के लिए भविष्य के सुपर फूड’ थीम पर राष्ट्रीय मोटा अनाज सम्मेलन का उद्घाटन किया है ।
मोटा अनाज, छोटे बीज वाली घासों का एक समूह है। इसका उत्पादन मानव उपभोग के लिए अनाज/ खाद्यान्न की फसल के रूप में या चारे के रूप में किया जाता है।
प्रोटीन, विटामिन-ए, आयरन और आयोडीन जैसे पोषक तत्वों से युक्त होने के कारण इन्हें सुपरफूड कहा जाता है।
यह खरीफ मौसम (जुलाई से अक्टूबर) में उगाई जाने वाली फसल है। बाजरा, फिंगर मिलेट/रागी (अनाज), और ज्वार खरीफ की फसलें हैं।
कृषि-जलवायु स्थितिः ये फसलें हरियाणा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान आदि के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में अच्छी तरह से शुष्क दोमट मृदा में उगाई जाती हैं।
मोटे अनाज का महत्व
- इसकी खेती के लिए अधिक मशीनीकरण की आवश्यकता नहीं होती। यह सूखे को सहन कर सकती है। फसल तैयार होने में कम समय लगता है। इससे खाद्य की मांग को पूरा करने में सहायता मिलती है।
- मिश्रित कृषि प्रणाली के रूप में इसका उपयोग खाद्य और चारे, दोनों रूपों में किया जाता है।
- परंपरागत रूप से यह जनजातीय कृषि प्रथा से संबंधित है। जैसे; कर्नाटक का रागी हब्बा त्योहार।
- इसमें कार्बन संचय करने की क्षमता है। यह खाद्य सुरक्षा के लिए जलवायु अनुकूलन में सहायक है।
मोटे अनाज के लिए की गई सरकारी पहले
- मोटे अनाज के लिए एकीकृत अनाज विकास कार्यक्रमः इसका उद्देश्य विशेष फसल आधारित प्रणालियों के तहत समग्र उत्पादकता बढ़ाना है।
- गहन मोटा अनाज संवर्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा के लिए पहलः
इसके निम्नलिखित लक्ष्य हैं-
- 5 लाख हेक्टेयर भूमि को मोटे अनाज की खेती के तहत लाना,
- संकर बीज की आपूर्ति करना और मिश्रित मोटा अनाज प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना करना।
- मोटे अनाज को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत शामिल किया गया है।
भारत विश्व स्तर पर मोटे अनाज का 5वां सबसे बड़ा निर्यातक है। वर्ष 2020 में कुल वैश्विक मोटा अनाज उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी लगभग 41% थी। सरकार ने वर्ष 2018 को राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में घोषित किया था। खाद्य और कृषि संगठन वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाएगा।
स्रोत –द हिन्दू