Question – भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली, दुनिया में सबसे अधिक निजीकरण में से एक होने के साथ, अपर्याप्त रूप से विनियमित है और केवल औसत आय स्तर से ऊपर वाले लोगों के लिए सुलभ है। टिप्पणी कीजिये। – 7 December 2021
उत्तर – भारत जैसे किसी भी विकासशील देश के लिए दक्ष, सुलभ और किफायती स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता होत है। जहां भारत ने स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं, वहीं वह एसडीजी और राष्ट्रीय नीतियों के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए भी संघर्ष कर रहा है। देश में स्वास्थ्य प्रणाली के संबंध में निम्नलिखित अवलोकन किए जा सकते हैं-
- 2013-14 के राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा आंकड़ों के अनुसार, स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 15 प्रतिशत था। तब से, यह धीरे-धीरे बढ़कर केवल 1.3% हो गया है। यह अब भी उप-सहारा अफ्रीका के देशों से कम है, जहां छह साल पहले यह आंकड़ा 2.9% था।
- इस स्थिति ने एक बड़ी निजी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का मार्ग प्रशस्त किया क्योंकि यह स्वास्थ्य सेवाओं की आपूर्ति में मौजूदा अंतराल या अंतराल को भरती है।
- निगरानी के अभाव में निजी क्षेत्र का बेतरतीब विकास हुआ है। निजी स्वास्थ्य देखभाल की उच्च लागत आगे चलकर गरीबों के लिए स्वास्थ्य सेवा तक पहुंचना मुश्किल बना देती है।
- वर्तमान में, स्वास्थ्य सेवा में परिसंचारी लगभग 69 प्रतिशत धन जेब से चला जाता है। यह कई गरीब लोगों को गरीबी की खाई में धकेल देता है। इसके अतिरिक्त, स्वास्थ्य पर वर्तमान सरकारी व्यय का केवल 6% निवारक देखभाल पर है।
हाल में उठाए गए कदम:
- मिशन इंद्रधनुष, राष्ट्रीय कौशल प्रयोगशाला-दक्ष, JSSK के अंतर्गत SNCUS में देखभाल की निशुल्क पात्रता कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक का रोकथाम और नियंत्रण करने के लिए एकीकृत राष्ट्रीय कार्यक्रम और अन्य हाल के कदम सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता में वृद्धि करते हैं।
- प्रथम चरण की चिकित्सीय सलाह की सुलभता और उपलब्धता बढ़ाने के लिए आयुष को मुख्य धारा में लाया गया है।
- 12वीं पंचवर्षीय योजना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के प्रारूप का उद्देश्य सार्वजनिक व्यय बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का 5% तक करना है, लेकिन इसके लिए अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता होगी।
- RBSK (राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम) के अंतर्गत बच्चों की जांच से जन्मजात दोष, बीमारियों, हीनताओं, विकलांगता सहित विकास विलंबता (4डी- birth defects, diseases, deficiencies, development delays including disability) का जल्दी पता लगाने के माध्यम से बच्चों के जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार आएगा और परिवारों के लिए जेब से खर्च कम होगा।
केन्द्रीय बजट 2021-22 में स्वास्थ्य के लिए किये गए प्रावधन
- बजट में वित्त वर्ष 2021-22 में स्वास्थ्य और खुशहाली में 2,23,846 करोड़ रुपये का व्यय रखा गया है जबकि 2020-21 में यह 94,452 करोड़ रुपये था। यह 137 प्रतिशत वृद्धि को दर्शाता है।
- स्वास्थ्य के प्रति समग्र दृष्टिकोण अपनाते हुए तीन क्षेत्रों को मजबूत करने पर ध्यान केन्द्रित – निवारक, उपचारात्मक, सुधारात्मक ।
- स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार के लिए कदम
- टीका
- वर्ष 2021-22 में कोविड-19 टीके के लिए 35,000 करोड़ रुपये
- मेड इन इंडिया न्यूमोकोकल वैक्सीन वर्तमान में पांच राज्यों के साथ देश भर में आ जाएगी- जिससे हर वर्ष 50,000 बच्चों की मौतों को रोका जा सकेगा।