भारत अंटार्कटिक वातावरण में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए प्रतिबद्ध
हाल ही में भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने कहा है कि ,भारत अंटार्कटिक वातावरण में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए प्रतिबद्ध है ।
पृथ्वी विज्ञान मंत्री ने अंटार्कटिक संधि के पर्यावरण संरक्षणपर प्रोटोकॉल (मैड्रिड प्रोटोकॉल) पर हस्ताक्षर करने की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन कदमों को सूचीबद्ध किया जो भारत इस आशय के लिए उठाएगा।
भारत अपने अंटार्कटिक अनुसंधान स्टेशनों यथा- मैत्री और भारती पर हरित वैकल्पिक ऊर्जा प्रणाली का उपयोग करेगा। साथ ही, अंटार्कटिक क्षेत्र में गैर-स्थानिक प्रजातियों के प्रवेश को भी नियंत्रित करेगा।
मैड्रडि प्रोटोकॉल पर वर्ष 1991 में हस्ताक्षर किए गए थे। यह वर्ष 1998 में लागू हुआ था। ज्ञातव्य है कि भारत भी इसका एक हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्र है। यह अंटार्कटिक को शांति एवं विज्ञान के लिए समर्पित एक प्राकृतिक रिजर्व के रूप में नामित करता है।
यह प्रोटोकॉल वैज्ञानिक अनुसंधान को छोड़कर,अंटार्कटिक के खनिज संसाधनों से संबंधित सभी गतिविधियों को प्रतिबंधित करता है।
वर्ष 2048 तक, प्रोटोकॉल को केवल अंटार्कटिक संधि के सभी सलाहकार पक्षों (भारत भी एक सदस्य है) के सर्वसम्मत समझौते द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
अंटार्कटिक संधि पर वर्ष 1959 में उन 12 देशों द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे जिनके वैज्ञानिक अंटार्कटिक और उसके आसपास सक्रिय थे।
अंटार्कटिक का महत्व
- अंटार्कटिक और चतुर्दिक दक्षिणी महासागर पृथ्वी की महासागरीय एवं वायुमंडलीय प्रणालियों के प्रमुख चालक हैं। अंटार्कटिक पर्यावरण जलवायु परिवर्तन के लिए एक मूल्यवान मानक प्रदान करता है।
- अंटार्कटिक की हिम पृथ्वी से सूर्य की कुछ किरणों को विक्षेपित कर देती है। इससे पृथ्वी का तापमान रहने योग्य बना रहता है।
स्रोत – द हिन्दू