भारतीय हथकरघा उद्योग को प्रोत्साहन देने हेतुआह्वान

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भारतीय हथकरघा उद्योग को प्रोत्साहन देने हेतुआह्वान

भारतीय हथकरघा उद्योग को प्रोत्साहन देने हेतुआह्वान

हाल ही में , केंद्रीय वस्त्र मंत्री द्वारा भारतीय हथकरघा उद्योग को प्रोत्साहन देने हेतु कदम उठाने का आह्वान किया गया है ।

केंद्रीय वस्त्र मंत्री ने 7वें राष्ट्रीय हथकरघा दिवस (National Handloom Day: NHD) के मौके पर देश को संबोधित किया । इस दौरान उन्होंने हथकरघा क्षेत्र को प्रोत्साहन प्रदान करने हेतुउत्पादों के निर्यात में चार गुना वृद्धि करने (वर्तमान 2500 करोड़ रुपये से बढ़ाकर10,000 करोड़ रुपये) पर बल दिया। साथ ही, आगामी तीन वर्षों में उत्पादन क्षमता में दोगुनी वृद्धि (वर्तमान 80,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर1.25 लाख करोड़ रुपये) करने का आह्वान किया।

  • 7 अगस्त, 1906 को कोलकाताटाउनहॉल में हुई एक बैठक में स्वदेशी आंदोलन की शरुआत की गईथी। इस ऐतिहासिक अवसर को स्मरण करने हेतु 7 अगस्त 2015 को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस केरूप में मनाने की घोषणा की गई थी।
  • इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य घरेलू उत्पादों तथा उत्पादन प्रक्रियाओं को पुनर्जीवित करना था।
  • विदित हो कि ,हथकरघा एक हस्त चालित उपकरण है, जिसका उपयोग बुनाई के लिए किया जाता है।
  • भारत के कुल वस्त्र उत्पादन में दूसरा सर्वाधिक (15%) योगदान हथकरघे का है। ज्ञातव्य है कि देशके कुल वस्त्र उत्पादन में विद्युत चालित करघे/पावरलूम (Power loom) का सर्वाधिक (60%) योगदान है।
  • पावरलूम, वस्त्र या किसी पैटर्न की बुनाई के लिए प्रयुक्त एक यंत्र चालित करघा (वाष्प या विद्युतद्वारा संचालित) है।

सरकार द्वारा आरंभ की गई पहलें:

  • राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम,
  • व्यापक हथकरघा क्लस्टर विकास योजना,
  • धागा आपूर्ति योजना,
  • हथकरघा बुनकर व्यापक कल्याण योजना

बुनकरों को सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GOM) में शामिल करना, ताकि वे अपने उत्पादों को प्रत्यक्ष रूप से विभिन्न सरकारी संगठनों को विक्रय कर सकें।

माल का भौगोलिक उपदर्शन (रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण) अधिनियम (Geographical Indications Act), 1999 के तहत हथकरघा मदों के पंजीकरण हेतु वित्तीयसहायता आदि।

 

बुनकर उद्योग की समस्याएँ

बुनकर उद्योग प्रमुख रूप से तीन तरह की समस्यायों से ग्रसित है-

  • आय सम्बन्धी : इसके अंतर्गत निम्न आय का होना ,ऋण सुविधाओं तक पहुँच का अभाव होना एवं नए बुनकरों का इस और आकर्षित न होना आदि।
  • आपूर्ति संबंधी:कच्चे माल की आपूर्ति न हो पाना ,एवं विपणन की समस्या।
  • बाह्य समस्याएँ : ब्रांडिंग एवं उपभोक्ता का खरीद व्यवहार।

स्रोत –द हिन्दू

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