भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वर्ष 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट में भारत की विकास क्षमता में सुधार के लिए संरचनात्मक सुधार के महत्व को रेखांकित किया है ।
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत RBI प्रतिवर्ष केंद्र सरकार को रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष–
- मुद्रास्फीतिः हेडलाइन मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही में ऊपरी सहनशीलता सीमा (2 प्रतिशत) को पार कर गई है। इस वजह से मौद्रिक नीति का संचालन चुनौतीपूर्ण हो गया है।
- तरलता (नकदी): मुद्रास्फीति को कम करने के लिए अर्थव्यवस्था से 2 ट्रिलियन रुपये वापस लिए गए हैं।
इसके लिए निम्नलिखित उपाय किये गए थेः
- नकद आरक्षित अनुपात (CRR) को कोविड-पूर्व स्तर पर लाया गया,लक्षित दीर्घकालिक रेपो संचालन किये गए, और खुले बाजार की संक्रियाओं (open market operations: OMO) का भी सहारा लिया गया।
- अधिशेष अंतरण: RBI की आय में 20% की वृद्धि के बावजूद सरकार को पिछले वर्ष के मुकाबले कम राशि का अधिशेष अंतरण (30,307.45 करोड़ रुपये) किया गया। इसका कारण यह है कि RBI ने अपनी आकस्मिकता निधि में 14 लाख करोड़ रुपयों का अंतरण किया है।
- गैर–बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFCs): इन कंपनियों की बैलेंस शीट का वर्ष 2021-22 (दिसंबर 2021 तक) में विस्तार हुआ था, लेकिन इस क्षेत्र की परिसंपत्तियों की गुणवत्ता में गिरावट आई है।
- त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई रूपरेखा (Prompt Corrective Action Framework) के विस्तार के लिए दिशा-निर्देश जारी कर NBFCs को भी इसके दायरे में लाया गया है।
- बैंकिंग क्षेत्रः सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (NPAS) छह 6 वर्षों में कम होकर निम्नतम स्तर पर आ गई हैं।
- ऋणों की पुनर्संरचनाः बैंकों पर से लंबी अवधि के वित्तपोषण के बोझ को दूर करने के लिए राष्ट्रीय अवसंरचना वित्तपोषण एवं विकास बैंक (NABFID) की स्थापना की गयी है।
- संवृद्धिः पिछले वर्ष में कई विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है।
- कई उद्योगों में उनकी क्षमता का उपयोग, सामान्य स्तर के करीब पहुंच रहा है।
स्रोत– द हिंदू