भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से ऋण प्रबंधन कार्य को पृथक करने की समीक्षा
हाल ही में वित्त संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से ऋण प्रबंधन कार्य को पृथक करने के लिए चर्चा की है ।
RBI से ऋण प्रबंधन को पृथक करने का विचार पूर्व में वित्त विधेयक, 2015 (और RBI द्वारा अपनी वार्षिक रिपोर्ट 2000-01 में भी) में सार्वजनिक ऋण प्रबंधन एजेंसी (Public Debt Management Agency: PDMA) के रूप में प्रस्तावित किया गया था। ज्ञातव्य है कि इसके लिए RBI अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता है।
PDMA केंद्र सरकार की आंतरिक और बाह्य देनदारियों का समग्र रूप से प्रबंधन करेगी और एक शुल्क के प्रतिफल में ऐसे मामलों पर परामर्श प्रदान करेगी।
एक अंतरिम व्यवस्था के रूप में, सरकार ने ऋण प्रबंधन के लिए RBI के तहत ही, परन्तु सलाहकारी शक्तियों के साथ एक स्वतंत्र एजेंसी के रूप में सार्वजनिक ऋण प्रबंधन प्रकोष्ठ (Public Debt Management Cell: PDMC) की स्थापना की है।
RBI के ऋण प्रबंधन कार्यों को पृथक करने की आवश्यकताः
- सभी सरकारी उधारियों को एक ही संस्था के अंतर्गत लाना।
- व्यापक संस्थागत सुधार को प्रोत्साहित करना। इससे बॉण्ड बाजार सुदृढ़ होगा और सार्वजनिक ऋण के संबंध में पारदर्शिता सुनिश्चित होगी, जिससे एक सक्षम प्रणाली का निर्माण होगा।
- संसाधनों के एक वृहदपूल से निधियों का दोहन करना।
- वैश्विक स्तर पर स्वीकृत प्रणाली।
PDMA से संबंधित मुद्दे:
- एक नई एजेंसी को उत्तरदायित्व के स्थानांतरण के परिणामस्वरूप बाजार में उतार-चढ़ाव की आशंका।
- बैंकों के स्वामी के रूप में सरकार और ऋण जारीकर्ताओं के मध्य हितों का टकराव।
- RBI के सापेक्ष PDMA की क्षमता पर संशय ।
स्रोत – द हिन्दू