भारतीय अर्थव्यवस्था ट्विन बैलेंस शीट की समस्या से बाहर
हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ट्विन बैलेंस शीट की समस्या से बाहर निकल गई है।
ट्विन बैलेंस शीट की समस्या से आशय कंपनियों और बैंकों, दोनों की पहले की संकटग्रस्त बैलेंस शीट से है।
अर्थात तब कंपनियों पर कर्ज का बोझ अधिक था, लेकिन उसे चुकाने के लिए उनके पास पर्याप्त धन नहीं था । उस समय बैंक भी गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) के बोझ तले दबे हुए थे । यह 2016-17 में NPAs लगभग 12 प्रतिशत तक पहुंच गई थी।
किसी अर्थव्यवस्था में ट्विन बैलेंस शीट की समस्या एक मानक पथ का अनुसरण करती है।
उस अर्थव्यवस्था की कंपनियां तेजी के दौरान अधिक निवेश और अपना विस्तार करती हैं। इससे उनका कर्ज दायित्व भी बढ़ जाता है, जिन्हें चुकाने में वे असमर्थ हो जाती हैं।
इस कारण कंपनियां अपने ऋणों के भुगतान में चूक (डिफॉल्ट) करती हैं। इससे बैंक की बैलेंस शीट ख़राब हो जाती है और ऋण देने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
हालांकि, RBI की हालिया वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार बैंकिंग और कॉर्पोरेट सेक्टर, दोनों की बैलेंस शीट मजबूत हुई है। इससे भारत ट्विन बैलेंस शीट लाभ की स्थिति में पहुंच गया है।
सकल NPA अनुपात कम होकर 3.9 प्रतिशत के 10 साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है।
कॉर्पोरेट बैलेंस शीट भी 10 वर्षों के सर्वोत्तम स्तर पर है ।
ट्विन बैलेंस शीट की समस्या को हल करने के लिए उठाए गए कदम
4R रणनीति अपनाई गई है:
NPAs की समस्या को पहचानना (Recognizing),
बैंकों का पुनर्पूजीकरण करना (Recapitalization),
बैंकों की समस्याओं का समाधान करना (Resolving) और बैंकों में सुधार करना (Reforming ) ।
RBI ने बैंकों को बड़े ऋणों पर जानकारी साझा करने में सक्षम बनाने के लिए सेंट्रल रिपॉजिटरी ऑफ इन्फॉर्मेशन ऑन लार्ज क्रेडिट्स (CRILC) लॉन्च किया है ।
भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 बनाई गई है।
अशोध्य ऋणों (बैड लोन्स) की समस्या से निपटने के लिए नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (NARCL) गठित की गई है।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस