हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भविष्य की विनाशक प्रौद्योगिकी पर कार्य कर रहा है ।
इसरो ऐसी नई तकनीकों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिसमें सेल्फ-ईटिंग-रॉकेट्स से लेकर स्वयं नष्ट होने वाले उपग्रह (self-vanishing satellites) और मेक-इन-स्पेस अवधारणाओं से लेकर क्वांटम संचार एवं रडार तक शामिल हैं।
इसरो मुख्यालय में एक भविष्योन्मुखी तथा नवीन प्रौद्योगिकी विकास प्रभाग, प्रौद्योगिकी विकास और नवाचार निदेशालय (DTDI) के माध्यम से इस पर कार्य किया जा रहा है।
सेल्फ-ईटिंग-रॉकेट्स व स्वयं-नष्ट होने वाले उपग्रहों के बारे में
- इसरो, रॉकेट के आवरण के लिए प्रयुक्त होने वाली सामग्री पर आधारित एक सेल्फ-ईटिंग-रॉकेट्स पर कार्य कर रहा है। यह अभियान के अंतिम चरण में मोटर्स के साथ-साथस्वयं को जलाकर नष्ट कर सकता है। इससे अंतरिक्ष मलबे की समस्या को कम करने में मदद मिलेगी।
- स्वयं-नष्ट होने वाले उपग्रह तकनीक, अंतरिक्ष यान को उसकी उपयोग अवधि के बाद “किल-बटन’ (kill-button) या इसे जलाकर नष्ट करने वाली किसी प्रक्रिया के माध्यम से विनष्ट करने में सक्षम बनाएगी।
अंतरिक्ष मलबे के बारे में-
- अंतरिक्ष मलबा मानव द्वारा अंतरिक्ष में छोड़े गए मशीनरी के खंड हैं। ये मुख्य रूप से पृथ्वी की कक्षा में पाए जाते हैं। इनमें निष्क्रिय हो चुके उपग्रह, रॉकेट और अंतरिक्ष यान के अवशेष आदि शामिल हैं।
- वर्तमान में, उपग्रहों और अंतरिक्ष मलबे सहित अनुमानित 20,000 ऑब्जेक्ट्स पृथ्वी की निचली कक्षा में गति कर रहे हैं।
संबंधित चिंताएं
अंतरिक्ष मलबे से सक्रिय उपग्रहों और अंतरिक्ष यान के लिए खतरा हो सकता है। अंतरिक्ष स्टेशन और मलबे के बीच संभावित टकराव का खतरा विद्यमान है। यदि टकराव का जोखिम बहुत अधिक बढ़ जाता है, तो पृथ्वी की कक्षा अगम्य भी हो सकती है।
केसलर सिंड्रोम
यदि कक्षा में बहुत अधिक अंतरिक्ष मलबा है, तो इसके परिणामस्वरूप एक श्रृंखला अभिक्रिया हो सकती है। इसमें अधिक से अधिक ऑब्जेक्ट्स आपस में टकराएंगे और नए अंतरिक्ष मलबे का निर्माण करेंगे। इसकी अंतिम परिणति पृथ्वी की कक्षा के अनुपयोगी हो जाने के रूप में होगी।
स्रोत – द हिन्दू