RBI के अनुसार बैंकों के विलय से बैंकिंग क्षेत्रक को लाभ हुआ
हाल ही में RBI की एक रिपोर्ट में 1997 से लेकर अब तक भारत में हुए बैंकों के विलय का मूल्यांकन किया गया है।
इस मूल्यांकन के दौरान निम्नलिखित को रेखांकित किया गया है:
- विलय से अधिग्रहणकर्ताओं और जिनका अधिग्रहण हुआ है, उन दोनों को लाभ पहुंचा है।
- अधिग्रहण करने वालों की दक्षता में सुधार हुआ है। इसके लिए उत्तरदायी कारक हैं- विविध भौगोलिक क्षेत्रों में उनका प्रवेश, ब्याज आय की हिस्सेदारी में सुधार आदि ।
- जिन बैंकों का अधिग्रहण हुआ है, उनके शेयरधारक मूल्य में वृद्धि के कारण उन्हें भी लाभ हुआ है।
- संयुक्त संस्थाएं वित्तीय जोखिमों का सामना करने में अधिक सक्षम होती हैं ।
- निजी क्षेत्र के बैंकों के अधिकतर विलय बाजार द्वारा संचालित थे, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) के विलय सरकार ने किये थे।
विलय और अधिग्रहण में अंतर
- विलय तब होता है जब दो अलग-अलग इकाइयाँ एक नया संयुक्त संगठन बनाने के लिये साथ आती हैं।
- इसके विपरीत अधिग्रहण का आशय उस स्थिति से होता है जिसमें कोई बड़ी इकाई किसी छोटी इकाई की परिसंपत्तियों और देनदारियों को स्वेच्छा से अधिगृहीत कर लेती है।
भारत में बैंकों के विलय का इतिहास
- बैंकों की स्थिति को सुधारने और ग्राहकों के हितों की रक्षा करने के लिये भारत में बैंक विलय की प्रक्रिया 1960 के दशक में शुरू हुई थी।
- वर्ष 1969 को भारतीय बैंकिंग प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण वर्ष माना जाता है, क्योंकि इसी वर्ष इंदिरा गांधी की सरकार ने देश की बैंकिंग प्रणाली को पूर्णतः बदलते हुए देश के 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था।
- वर्ष 1969 के बाद वर्ष 1980 में भी देश के 6 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।
- भारतीय बैंक संघ के आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 1985 से अब तक देश में छोटे-बड़े कुल 49 बैंकों का विलय हो चुका हैं।
देश के कुछ महत्त्वपूर्ण बैंक विलय निम्नानुसार हैं:
- वर्ष 1993-94 में पंजाब नेशनल बैंक और न्यू इंडिया बैंक का विलय किया गया था, उल्लेखनीय है कि यह देश का पहला दो राष्ट्रीय बैंकों का विलय था।
- वर्ष 2004 में ओरिएण्टल बैंक ऑफ कॉमर्स और ग्लोबल ट्रस्ट बैंक का विलय।
- वर्ष 2008 में स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र और SBI का विलय।
- वर्ष 2017 में SBI और उसके 5 सहयोगी बैंकों का विलय।
बैंकों का विलय और नरसिंहम समिति
- वर्ष 1998 में भी सरकार द्वारा एम. नरसिंहम की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। इस समिति का मुख्य कार्य भारत के बैंकिंग सुधारों की समीक्षा करना और उसके लिये उपर्युक्त सुझाव देना था।
- समिति ने अप्रैल 1998 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कई अन्य सिफारिशों के साथ बड़े बैंकों के विलय की सिफारिश भी की थी।
विलय और अधिग्रहण के खतरे
- अधिकारियों में प्रतिबद्धता की कमी की वजह से योजना के क्रियान्वयन में समस्या आती है।
- ग्राहकों की सोच पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है ।
- प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है और टू-बिग-टू-फेल (TBTF) बैंकों का निर्माण होता है जिसका संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली पर प्रभाव पड़ सकता है।
- TBTF का अर्थ है कि किसी बैंक आदि के विफल होने पर संपूर्ण देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
M&A के लाभ
- इकोनॉमीज ऑफ स्केल में सुधार होता है। इसका तात्पर्य है कि उत्पादन बढ़ाने से लागत में कमी आती है।
- बाजार हिस्सेदारी और वितरण क्षमताओं में वृद्धि होती है।
- कार्यबल की लागत कम होती है और प्रतिभा पलायन को रोकने में मदद मिलती है।
- वित्तीय संसाधनों में बढ़ोतरी होती है।
- यह व्यावसायिक कमियों को दूर करता है। ये कमियां उत्पाद, भौगोलिक विस्तार या तकनीक से संबंधित हो सकती हैं।
स्रोत – आर.बी.आई.