बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम 1988
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम 1988 के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया गया है ।
- यह कानून बेनामी लेनदेन को प्रतिबंधित करने और बेनामी रूप में रखी गई संपत्ति की वसूली/ जब्ती के लिए वर्ष 1988 में पारित किया गया था।
- हालांकि, कानून के कार्यान्वयन के लिए नियम, विनियम और प्रक्रियाएं नहीं बनाई जा सकी हैं। इस कारण से यह अभी तक अप्रभावी बना हुआ है।
- बेनामी लेनदेन से तात्पर्य ऐसे किसी भी लेनदेन से है, जिसमें किसी व्यक्ति की संपत्ति का हस्तांतरण किसी अन्य व्यक्ति द्वारा भुगतान किए गए या उपलब्ध कराए गए प्रतिफल के लिए किया जाता है।
- बेनामी लेनदेन का उपयोग कर से बचने, गोपनीयता बनाए रखने, बेहिसाब धन कहीं ओर निवेश करने आदि के लिए किया जाता है, ताकि संपत्ति के वास्तविक स्वामित्व को छुपाया जा सके।
- वर्ष 2016 के संशोधन ने बेनामी लेनदेन के दायरे और दंड का विस्तार किया था। इसने बेनामी लेनदेन से प्राप्त संपत्ति को जब्त करने का प्रावधान भी जोड़ा था।
निर्णय के मुख्य निष्कर्ष
- वर्ष 1988 के अधिनियम की धारा 3(2) (2016 के अधिनियम के अनुसार भी) मनमानी प्रकृति की है। इस कारण यह असंवैधानिक है। यह संविधान के अनुच्छेद 20(1) का उल्लंघन करती है।
- यह अनुच्छेद संबंधित कानून पारित होने की तारीख से पहले किये गए अपराध के लिए दंडित करने से रोकता है ।
- धारा 5 के तहत वर्ष 2016 के दंडात्मक संशोधन, पूर्वव्यापी रूप (कानून बनने से पहले) से लागू नहीं होंगे।
- वर्ष 2016 के संशोधन अधिनियम की धारा 5 किसी भी संपत्ति को जब्त करने की अनुमति देती है, जो बेनामी लेनदेन से जुड़ी है।
- वर्ष 1988 से वर्ष 2016 के बीच के लेनदेन के लिए अभियोजन या जब्ती की कार्यवाही को रद्द कर दिया गया है।
स्रोत –द हिन्दू