बेनामी अधिनियम प्रावधान को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की समीक्षा की मांग

बेनामी अधिनियम प्रावधान को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की समीक्षा की मांग

हाल ही में केंद्र सरकार ने बेनामी अधिनियम प्रावधान को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की समीक्षा की मांग की है।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2022 में दिए गए उस निर्णय की समीक्षा की मांग की है जिसमें बेनामी लेन-देन (प्रतिषेध) अधिनियम, 1988 तथा इसमें 2016 के संशोधनों के कई प्रावधानों को रद्द कर दिया गया था ।

बेनामी लेन-देन (प्रतिषेध) संशोधन अधिनियम, 2016 के माध्यम से 1988 के मूल बेनामी अधिनियम में संशोधन किया गया था। इसमें धाराओं की संख्या को 9 से बढ़ाकर 72 कर दिया गया था ।

बेनामी लेन-देन (प्रतिषेध) अधिनियम, 1988 को बेनामी लेन-देन को प्रतिबंधित करने और सरकार को बेनामी रूप में रखी गई संपत्ति की जब्ती का अधिकार प्रदान करने के लिए पारित किया गया था ।

यदि संपत्ति को वैश्वासिक (Fiduciary) हैसियत से अपने अधीन रखा जाता है, तो यह इस कानून के दायरे में नहीं आती है।

बेनामी लेन-देन से तात्पर्य ऐसे किसी भी लेन-देन से है, जिसमें किसी व्यक्ति की संपत्ति का हस्तांतरण किसी अन्य व्यक्ति द्वारा भुगतान किए गए या उपलब्ध कराए गए प्रतिफल के लिए किया जाता है ।

सुप्रीम कोर्ट ने 2022 के निर्णय में क्या कहा ?

वर्ष 1988 के अधिनियम की धारा 3 ( 2 ) (2016 के अधिनियम के अनुसार भी) मनमानी प्रकृति की है। इस कारण यह असंवैधानिक है। यह संविधान के अनुच्छेद 20(1) का उल्लंघन करती है ।

यह अनुच्छेद संबंधित कानून पारित होने की तारीख से पहले किए गए अपराध के लिए दंडित करने से रोकता है।

धारा 5 के तहत वर्ष 2016 के दंडात्मक संशोधन, पूर्वव्यापी रूप ( कानून बनने से पहले) से लागू नहीं होंगे।

वर्ष 2016 के संशोधन अधिनियम की धारा 5 किसी भी संपत्ति को जब्त करने की अनुमति देती है, जो बेनामी लेन-देन से जुड़ी है ।

वर्ष 1988 से वर्ष 2016 के बीच के लेन-देन के लिए अभियोजन या जब्ती की कार्यवाही को रद्द घोषित किया जाता है ।

स्रोत – द हिन्दू

Download Our App

More Current Affairs

Share with Your Friends

Join Our Whatsapp Group For Daily, Weekly, Monthly Current Affairs Compilations

Related Articles

Youth Destination Facilities

Enroll Now For UPSC Course