बेट्टा – कुरुबा समुदाय अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल
- हाल ही में बेट्टा-कुरुबा समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए लोक सभा में एक विधेयक पारित किया गया है।
- देश की स्वतंत्रता के बाद से ही कुरुबा समुदाय को एसटी का दर्जा प्राप्त था। परंतु वर्ष 1977 में पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एल.जी. हावनूर ने कुरुबा समुदाय को एसटी सूची से ‘अति पिछड़ा वर्ग’ की श्रेणी शामिल कर दिया।
बेट्टा–कुरुबा के बारे में
- यह समुदाय कर्नाटक के चामराजनगर, कोडागु और मैसूरु जिलों में निवास करता है। समुदाय के लोग वनोपज और बांस आदि का संग्रह करते हैं।
- वर्तमान में कुरुबा समुदाय की जनसंख्या राज्य की कुल आबादी का 3% है और ये पिछड़े वर्ग की श्रेणी में आते हैं।
- कुरुबा कर्नाटक में लिंगायत, वोक्कालिगा और मुसलमानों के बाद चौथी सबसे बड़ी जाति है।
- अन्य राज्यों में कुरुबा को अलग-अलग नामों से जाना जाता है – जैसे महाराष्ट्र में धनगर, गुजरात में रबारी या राईका, राजस्थान में देवासी और हरियाणा में
- इस समुदाय की अपनी बोली है, जिसकी कोई लिपि नहीं है । ये लोग शिकार के आदिम उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं और सर्वात्मवाद (Animism) का पालन करते हैं।
ST सूची में शामिल करने की प्रक्रिया:
- अनुसूचित जनजाति में किसी भी समुदाय को शामिल करने की प्रक्रिया संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में संशोधन करने वाले विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही प्रभावी होती है।
- सर्वप्रथम जनजातियों को ST की सूची में शामिल करने की प्रक्रिया में संबंधित राज्य सरकारों को सिफारिश की जाती है, इसके पश्चात सिफारिश को जनजातीय मामलों के मंत्रालय को भेजा जाता है, जो समीक्षा करता है और अनुमोदन के लिये भारत के महापंजीयक को इसे प्रेषित करता है।
- इसके बाद सूची को अंतिम निर्णय के लिये कैबिनेट को भेजे जाने से पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes- NCST) द्वारा मंज़ूरी दी जाती है।
- अंतिम निर्णय करने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है (अनुच्छेद 342 के तहत)।
संविधान में अनुसूचित जनजाति
- संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार, अनुसूचित जनजातियाँ वे समुदाय हैं जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा एक सार्वजनिक अधिसूचना या संसद द्वारा विधायी प्रक्रिया के माध्यम से अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित किया गया है।
- अनुसूचित जनजातियों की सूची राज्य/केंद्रशासित प्रदेश से संबंधित होती है, ऐसे में एक राज्य में अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित एक समुदाय को दूसरे राज्य में भी यह दर्जा प्राप्त होना अनिवार्य नहीं है।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस