बिहार में जातिगत जनगणना के खिलाफ याचिका
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जातिगत जनगणना के खिलाफ याचिकाओं पर विचार करने से इंकार कर दिया है।
- हाल ही में, बिहार सरकार ने जातिगत सर्वेक्षण का कार्य शुरू किया है। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य पंचायत से लेकर जिला स्तर तक एक मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से प्रत्येक परिवार का डिजिटल रूप से डेटा संग्रह करना है ।
- सर्वेक्षण की अधिसूचना को इस आधार पर रद्द करने के लिए याचिकाएं दर्ज की गई थी कि जाति आधारित जनगणना “संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करती है।
- सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर विचार करने से इंकार कर दिया है और याचिकाकर्ताओं को पहले उच्च न्यायालय में जाने को कहा है।
जातिगत जनगणना के बारे में
- जातिगत जनगणना, जनगणना कार्य में जनसंख्या की जातिवार प्रस्तुति है ।
- केवल 1931 की जनगणना के दौरान जनगणना के आंकड़ों में जाति को एक मापदंड के रूप में शामिल किया गया था ।
- आजादी के बाद से, जनगणना में जातिगत खंड में केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी से संबंधित आंकड़े उपलब्ध रहते हैं ।
- जाति आधारित जनगणना गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में है ।
- इससे पहले 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) आयोजित करके जाति आधारित जनगणना की दिशा में प्रयास किया गया था ।
- अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के भीतर जातियों के वर्गीकरण के लिए रोहिणी आयोग का गठन – किया गया था, ताकि बेहतर लक्षित सेवा प्रदान की जा सके ।
जातिगत जनगणना की आवश्यकता क्यों है?
- वर्तमान में उपलब्ध जाति संबंधी डेटा लगभग आठ दशक पुराना है, इस कारण वह अप्रासंगिक है ।
- OBC के उप-वर्गीकरण में बाधा आ रही है, जिसका उल्लेख रोहिणी आयोग ने किया है।
- सरकार के पास नीतियों के निर्माण के लिए पर्याप्त डेटा होना चाहिए ।
- सभी जातियों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान करने की जरूरत है।
जातिगत जनगणना के खिलाफ तर्क
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50%आरक्षण सीमा का उल्लंघन कर सकती है।
- देश के सामाजिक सामंजस्य को बिगाड़ सकती है।
- मौजूदा शैक्षिक और रोजगार मानदंडों में असंतुलन पैदा कर सकती है।
स्रोत – द हिन्दू