बिजली संयंत्रों में बायोमास को–फायरिंग की योजना
हाल ही में विद्युत मंत्रालय ने राज्यों से बिजली संयंत्रों में बायोमास को-फायरिंग की योजना तैयार करने को कहा है ।
इस योजना का उद्देश्य ताप विद्युत संयंत्रों में को-फायरिंग (सह-दहन) के लिए बायोमास का उपयोग सुनिश्चित करने हेतु एक समयबद्ध योजना तैयार करना है।
- मंत्रालय ने खरीफ फसल के मौसम से पहले यह योजना तैयार करने के लिए कहा है। इससे पराली जलाने की गतिविधियों को नियंत्रित किया जा सकेगा और वायु प्रदूषण को कम करने में भी मदद मिलेगी।
- इससे पहले, अक्टूबर 2021 में सरकार ने कृषि अपशिष्ट आधारित बायोमास के उपयोग के लिए नीति जारी की थी। इसके तहत सभी ताप विद्युत संयंत्रों में कोयले के साथ पांच से सात प्रतिशत बायोमास को-फायरिंग अनिवार्य कर दी गई थी।
- विद्युत मंत्रालय ने ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास का उपयोग करने के लिए वर्ष 2021 में ‘समर्थ’ (Sustainable Agrarian Mission on use of Agro Residue in TPPs – SAMARTH) मिशन भी शुरू किया था। यहां SAMARTH से तात्पर्य ताप विद्युत संयंत्रों में कृषि अवशेषों के उपयोग पर संधारणीय कृषि मिशन है।
बायोमास को–फायरिंग के बारे में
बायोमास को-फायरिंग का अर्थ कोयले से संचालित बिजली संयंत्रों में कोयले के साथ-साथ बायोमास का भी दहन है।
को–फायरिंग के प्रकार
- प्रत्यक्ष को–फायरिंग: इसमें बायोमास और कोयले को एक ही भट्टी में जलाया जाता है।
- अप्रत्यक्ष को–फायरिंगः इसमें एक बायोमास गैसीफायर का उपयोग करके ठोस बायोमास को स्वच्छ ईंधन गैस में बदल दिया जाता है।
- समानांतर को–फायरिंग: पारंपरिक बॉयलर के अलावा पूरी तरह से अलग एक बायोमास बॉयलर स्थापित किया जाता है।
बायोमास को–फायरिंग का महत्वः
- यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करता है,
- यह किसानों के लिए अतिरिक्त आय सुनिश्चित करता है,
- कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को जल्दी और कम लागत में रेट्रोफिट किया जा सकता है,
- यह कोयला संयंत्रों के मौजूदा नेटवर्क का ही उपयोग करता है
स्रोत –द हिन्दू