नीति आयोग ने बांस विकास पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया
इस कार्यशाला के माध्यम से इसमें भाग लेने वालों द्वारा बांस मूल्य श्रृंखला से संबंधित सभी घटकों की पूरी जानकारी ली गई। बांस मूल्य श्रृंखला में रोपण, उत्पादन, प्रसंस्करण, मानकीकरण और उपयोग शामिल हैं।
बांस तेजी से वृद्धि करने वाली एक घास है। यह सामान्यतः एक लकड़ी जैसा होता है। यहउष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय और मृदु समशीतोष्ण क्षेत्रों में पाया जाता है।
बांस की विविधता के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है तथा चीन प्रथम स्थान पर है।
बांस की कृषि के लाभः
- इससे जल का संरक्षण होता है। यह सतह से जल केवाष्पीकरण को कम करता है।
- इसमें क्षतिग्रस्त मृदा में सुधार करने और उसे बेहतर बनानेकी विशेष क्षमता होती है। इसलिए यह निम्नीकृत मृदा कापुनरुद्धार करने के लिए एक आदर्श विकल्प है।
बांस के उपयोगः
इसका उपयोग निर्माण सामग्री, कृषिउपकरण, फर्नीचर, संगीत वाद्ययंत्र, खाद्य पदार्थ, हस्तशिल्प, बड़े बांस आधारित उद्योग (पेपर की लुगदी, रेयान इत्यादि), पैकेजिंग आदि में किया जाता है।
बांस की कृषि को बढ़ावा देने के लिए किए गए उपाय
- रोपण और नर्सरी में वृद्धि करने तथा बांस संबंधी उत्पादों के विकास के लिए 9 राज्यों में 22 बांस क्लस्टर स्थापित किए गए हैं।
- इस क्षेत्रक की संपूर्ण मूल्य श्रृंखलाके समग्र विकास के लिए वर्ष 2018-19 में पुनर्गठित राष्ट्रीय बांस मिशन आरंभ किया गया था।
- भारतीय वन अधिनियम 1927 को वर्ष 2017 में संशोधित कर बांस कोवृक्ष की परिभाषा से हटा दिया गया है। इस प्रकार अब वनों के बाहर उगाए जाने वाले बांस को कटाई और परिवहन के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।
स्रोत – द हिन्दू