बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार
हाल ही में एक भारतीय जीवविज्ञानी शैलेंद्र सिंह को 3‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ कछुआ संरक्षण प्रजातियों को विलुप्त होने के कगार से बचाने के लिए ‘बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार’ (Behler Turtle Conservation Award) से सम्मानित किया गया है।
इन 3 ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ कछुआ प्रजातियों में पहला, लाल रंग के कवच वाला कछुआ , दूसरा बाटागुर कचुगा’ (Red-crowned Roofed Turtle – Batagur kachuga) एवं तीसरा उत्तरी नदी टेरापिन कछुआ (बटागुर बस्का– Batagur baska) और ब्लैक सॉफ़्टशेल कछुआ (निल्सोनिया नाइग्रिकन्स– Nilssonia Nigricans)शामिल हैं।
‘बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार’ कछुआ संरक्षण में सम्मिलित कई वैश्विक निकायों जैसे -‘कछुआ जीवन रक्षा गठबंधन’ एवं टर्टल सर्वाइवल एलायंस, IUCN/SSC कच्छप / टॉर्टस (Tortoise) और ताजे मीठे पानी के कछुआ विशेषज्ञ समूह, कछुआ संरक्षण, और ‘कछुआ संरक्षण कोष’द्वारा प्रदान किया जाता है।
भारत में मीठे पानी के कछुओं अथवा टर्टल (Turtle) और कच्छपों (टॉर्टस) की 29 जातियां पायी जाती हैं।
टर्टल और टॉर्टस के बीच अंतर:
- टॉर्टस की पीठ का कवच अधिक गुलाई लिए हुए और गुंबददीय आकार का होता है, जबकि ‘टर्टल’ का कवच पतला और अधिक चमकीला होता है।
- टॉर्टस अपना अधिकांश समय जमीन पर बिताते हैं, और टर्टल पानी में जीवन बिताने के लिए अधिक अनुकूलित होते हैं।
टर्टल सर्वाइवल एलायंस (TSA) के बारे में:
मीठे पानी के कछुओं अर्थात टर्टल (Turtle) और टॉर्टस के ‘सतत कैप्टिव प्रबंधन’ (sustainable captive management) हेतु ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के सहयोग के लिए वर्ष 2001 में टर्टल सर्वाइवल एलायंस (टीएसए) का गठन किया गया था। आरंभ में TSA को IUCN की ‘टर्टल और टॉर्टस विशेषज्ञ समूह’ की एक ‘टास्क फोर्स’ नामित किया गया था।
स्रोत – द हिन्दू