बसव जयंती
हाल ही में 12वीं सदी के कवि-दार्शनिक और लिंगायत धर्म के संस्थापक संत भगवान बसवन्ना (Basavanna) की जयंती मनाई गई।
बसवन्ना: विचार एवं योगदान
बारहवीं सदी के दार्शनिक, राजनीतिज्ञ, कन्नड़ कवि और समाज सुधारक, बसवन्ना कर्नाटक में कलचुरी-वंश के राजा बिज्जल प्रथम के शासनकाल के समकालीन थे।
बसवन्ना की कविताओं को ‘वचन’ (Vachanaas) कहा जाता है, जिनके माध्यम से समाज में इन्होंने जागरूकता का प्रसार किया ।
बासवन्ना ने लैंगिक अथवा सामाजिक भेदभाव, अंधविश्वास और रीति-रिवाजों का खंडन किया था। उन्होंने, अनुभव मंटपा (अथवा, आध्यात्मिक अनुभव भवन) जैसे नए सार्वजनिक संस्थानों की शुरुआत की।
उन्होंने एक नेता के रूप में ‘वीरशैव’ (भगवान शिव के कट्टर उपासक) नामक एक नए भक्ति आंदोलन का नेतृत्व किया। इस आंदोलन की जड़ें सातवीं से ग्यारहवीं सदी के दौरान में प्रचलित तमिल भक्ति आंदोलन, विशेषकर शैव नयनार परंपराओं में मिलती है।
बसवा ने भक्तिमय आराधना पर जोर देते हुए ब्राह्मणों के नेतृत्व में मंदिरों में पूजा और अनुष्ठानों का खंडन किया, और इसके स्थान पर प्रतीक रूप में व्यक्तिगत रूप से छोटे शिवलिंग धारण करके शिव की प्रत्यक्ष आराधना करने का संदेश दिया।
बसवन्ना के नेतृत्व में चलाए गए ‘शरण आंदोलन’ (Sharan Movement) ने सभी जातियों के लोगों को आकर्षित किया, और भक्ति आंदोलन की अधिकाँश शाखाओं की भांति, ‘वचन’ के रूप में साहित्य रचना किया, जिसमे वीरशैव संप्रदाय के संतों की आध्यात्मिक दुनिया का वर्णन मिलता है।
बसवन्ना का ‘शरण आंदोलन’ तत्कालीन समय के हिसाब से काफी उग्र सुधारवादी आंदोलन था।
स्रोत –द हिन्दू