बलात्कार के चार आरोपियों के एनकाउंटर करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई
एनकाउंटर करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश करने वाली उच्चतम न्यायालय (SC) पैनल की रिपोर्ट तेलंगाना को मुश्किल में डाल सकती है।
- वर्ष 2019 में बलात्कार के चार आरोपियों के एनकाउंटर की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय ने न्यायमूर्ति वी. एस. सिरपुरकर जांच आयोग गठित किया था।
- इस जांच आयोग ने कथित मुठभेड़ में शामिल अधिकारियों के खिलाफ हत्या के आरोप दायर करने की सिफारिश की है।
- पुलिस ने यह दावा किया है कि तत्काल न्याय के लिए जनता का बहुत अधिक दबाव था, इस कारण आत्म-रक्षा में यह एनकाउंटर करना पड़ा। वहीं सिविल सोसाइटी ने इसे न्यायेतर हत्या (Extrajudicial Killing) का कृत्य बताया है।
- न्यायेतर हत्या का अर्थ है किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना आधिकारिक पद पर आसीन व्यक्ति/ व्यक्तियों द्वारा किसी व्यक्ति की हत्या करना।
- दंड प्रक्रिया संहिता (P.C.), 1973 की धारा 149 पुलिस को किसी भी संज्ञेय अपराध को रोकने के लिए अपनी पूरी क्षमता से कार्य करने की अनुमति देती है। इस तरह उन्हें एनकाउंटर के मामलों से संरक्षण प्राप्त हो जाता है।
भारत में न्यायेतर हत्याओं के कारण हैं:
व्यापक भ्रष्टाचार, दोषपूर्ण पुलिस व्यवस्था, आपराधिक न्याय प्रणाली में विश्वास की कमी, या न्यायिक प्रक्रिया के अनुचित उपयोग/ दुरुपयोग के कारण अनावश्यक देरी से निराशा आदि।
न्यायेतर हत्याओं पर मुख्य चिंताएं–
- यह संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 22 आदि के तहत मूल अधिकारों का उल्लंघन है।
- ये प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत को कमजोर करती हैं और पुलिस को मनमानी करने की शक्ति देती हैं।
- यह आपराधिक न्याय प्रणाली की खामियों को दूर करने के प्रमुख मुद्दे से ध्यान भटकाती है।
- उच्चतम न्यायालय (वर्ष 2014 के PUCL बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में) और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने ऐसे मामलों के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए हैं।
- हिरासत में होने वाली मौतों के मामलों में जवाबदेही तय करने के लिए इन दिशा-निर्देशों का पालन किया जाना होता है।
स्रोत –द हिन्दू