फूड फोर्टिफिकेशन की अनिवार्यता का मुद्दा
हाल ही में, फूड फोर्टिफिकेशन की अनिवार्यता पर विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की है।
- विशेषज्ञों ने चावल और खाद्य तेलों को विटामिन और खनिज के साथ अनिवार्य रूप से फोर्टिफाइड करने की केंद्र की योजना पर संदेह प्रकट किया है।
- उन्होंने फोर्टिफिकेशन के पक्ष में अनिर्णायक साक्ष्यों को आधार बनाते हुए इसके स्वास्थ्य और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव के संबंध में चेतावनी दी है।
- फूड फोर्टिफिकेशन, प्रसंस्करण के दौरान आमतौर पर उपभोग किए जाने वाले खाद्य पदार्थों में विटामिन और खनिजों के सम्मिश्रण की प्रक्रिया है।
- यह प्रक्रिया इन खाद्य पदार्थों में पोषण की मात्रा में वृद्धि करने तथा हिडन हंगर (प्रच्छन्न भुखमरी) से निपटने हेतु संपादित की जाती है।
- एक या एक से अधिक सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे लोहा, फोलेट, जस्ता, विटामिन-ए, विटामिन बी-12 और विटामिन-डी की कमी की स्थिति को हिडन हंगर कहा जाता है।
प्रमुख मुद्देः
- जिन अध्ययनों के आधार पर भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा दिया जा रहा है, उन्हें उन खाद्य कंपनियों द्वारा प्रायोजित किया जाता है, जो इससे लाभान्वित होंगी, इससे हितों के टकराव की संभावना है।
- पोषक तत्व एकल स्तर पर कार्य नहीं करते हैं, बल्कि इनके इष्टतम अवशोषण के लिए इन्हें एक दूसरे की आवश्यकता होती है।
- अल्पपोषित आबादी के लिए खाद्य में एक या दो कृत्रिम रासायनिक विटामिन और खनिज के सम्मिश्रण से विषाक्तता हो सकती है।
- अनिवार्य फोर्टिफिकेशन से भारतीय किसानों और खाद्य प्रसंस्करणकर्ताओं की व्यापक अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंचेगी।
- विशेषज्ञों ने यह सुझाव दिया है कि आहार विविधता और उच्च प्रोटीन खपत भारत में हिडन हंगर की समस्या के समाधान की कुंजी है।
- संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 80 प्रतिशत से अधिक किशोर हिडन हंगर से पीड़ित हैं|
स्रोत –द हिन्दू