फिनलैंड आधिकारिक तौर पर नाटो (NATO) का 31वां सदस्य बना

फिनलैंड आधिकारिक तौर पर नाटो (NATO) का 31वां सदस्य बना

हाल ही में फिनलैंड आधिकारिक तौर पर उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो (North Atlantic Treaty Organization: NATO) का 31वां सदस्य बन गया है।

अप्रैल 2023 को ब्रसेल्स स्थित नाटो मुख्यालय में एक औपचारिक समारोह के दौरान नॉर्डिक राष्ट्र इस गठबंधन में शामिल हुआ। इस अवसर पर अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और नाटो महासचिव जेन स्टोलटेनबर्ग भी मौजूद थे।

फिनलैंड की सदस्यता नाटो के हाल के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में से एक है। फिनलैंड, रूस के साथ 1,340 किमी (832 मील) की सीमा साझा करता है और यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के पश्चात अपनी तटस्थता छोड़ते हुए नाटो सैन्य गठबंधन में शामिल होने का फैसला किया है।

फिनलैंड बाल्टिक सागर में स्थित सातवाँ नाटो देश बन गया है।

बता दें कि फिनलैंड के साथ स्वीडन ने भी नाटो में शामिल होने के लिए आवेदन किया था, लेकिन उसके प्रवेश में तुर्की रोड़ा अटका रहा है। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने स्वीडेन पर कुर्द आतंकवादियों के समर्थन का आरोप लगाया है। नाटो में शामिल होने के लिए नाटो के सभी सदस्य देशों की मंजूरी आवश्यक है।

फिनलैंड के बारे में

फिनलैंड ने 1917 में रूस से स्वतंत्रता की घोषणा की, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध में सोवियत संघ के हाथों अपनी हार के बाद, उसे शीत युद्ध के अंत तक मास्को से मजबूत प्रभाव को सहन करना पड़ा।

फिनलैंड संयुक्त राष्ट्र, नॉर्डिक परिषद और यूरोपीय संघ का सदस्य है। फिनलैंड अपने नागरिकों को ब्रॉडबैंड इंटरनेट का कानूनी अधिकार देने वाला दुनिया का पहला देश है।

फ़िनलैंड 1995 में यूरोपीय संघ में शामिल हुआ और 1 जनवरी 1999 को यूरो मुद्रा को अपनाने वाले पहले देशों में से एक था।

फ़िनलैंड अपने तीन पड़ोसियों, नॉर्वे, स्वीडन और रूस के साथ सीमा साझा करता है।

यह एक बाल्टिक देश है। बाल्टिक सागर नौ देशों से घिरा हुआ है: डेनमार्क, जर्मनी, पोलैंड, लिथुआनिया, लातविया, एस्टोनिया, रूस, फिनलैंड और स्वीडन।

NATO एलायंस

त्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन ने 4 अप्रैल, 1949 को 12 सदस्यीय नाटो संधि पर हस्ताक्षर किए थे ।

1991 में USSR के पतन के बाद, कई पूर्वी यूरोपीय राष्ट्र जो पहले सोवियत संघ के सदस्य थे, नाटो में शामिल हो गए। अब तक, नाटो में 31 सदस्य शामिल हैं,

NATO की “ओपन डोर पॉलिसी” वाशिंगटन संधि के अनुच्छेद 10 पर आधारित है, जिसमें कहा गया है कि इस संधि के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने और उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र की सुरक्षा में योगदान करने की स्थिति वाला कोई भी ” यूरोपीय देश” इसका सदस्य बन सकता है।

अध्ययन के अनुसार, नाटो की सदस्यता चाहने वाले देशों को यह प्रदर्शित करना होता है कि उसने कुछ आवश्यकताओं को पूरा किया है।

इसमे शामिल है:

बाजार अर्थव्यवस्था पर आधारित एक कार्यशील लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रणाली;

अल्पसंख्यक आबादी का उचित व्यवहार;

संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान के प्रति प्रतिबद्धता;

नाटो संचालन में सैन्य योगदान करने की क्षमता और इच्छा; और

लोकतांत्रिक नागरिक-सैन्य संबंधों और संस्थागत संरचनाओं के प्रति प्रतिबद्धता ।

स्रोत – द हिन्दू  

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