प्रजातियों पर प्लास्टिक प्रदूषण के प्रभावों का परीक्षण
हाल ही में ताजा जल की जलीय, स्थलीय और एवियन प्रवासी प्रजातियों पर प्लास्टिक प्रदूषण के प्रभावों का परीक्षण किया गया ।
यह अध्ययन प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (Conservation of Migratory Species: CMS) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के मध्य सहयोग का परिणाम है। यह अध्ययन जापान द्वारा वित्त पोषित काउंटर मेशर (MEASURE) परियोजना का एक भाग है। काउंटर मेशर का उद्देश्य एशिया के नदी तंत्रों में प्लास्टिक प्रदूषण के स्रोतों और मार्गों की पहचान करना है।
यह अध्ययन वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (CMS) पर अभिसमय द्वारा संरक्षित, भूमि और ताजाजल की प्रवासी प्रजातियों पर प्लास्टिक प्रदूषण के प्रभावों की पहचान करता है।
प्रमुख निष्कर्ष
- अध्ययन में पाया गया है कि वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 53 मिलियन टन प्लास्टिक जलीय प्रणालियों में प्रवेश कर सकता है। यह अंततः 90 मिलियन टन तक बढ़ सकता है।
- अध्ययन में गंगा और इरावदी डॉल्फिन, डुगोंग या समुद्री गाय, एशियाई हाथियों तथा विभिन्न एवियन प्रजातियों की केस स्टडीज को समाविष्ट किया गया है, जो प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई थीं।
अध्ययन द्वारा प्रकट किए गए प्रमुख खतरों में शामिल हैं–
- प्लास्टिक अपशिष्ट में फंसना, जैसे कि मछली पकड़ने वाले जाल; प्लास्टिक का अंतर्ग्रहण जिससे खाद्य श्रृंखला प्रभावित होती है; प्लास्टिक अपशिष्ट के कारण वायु-जल अंतराफलक पर रहने वाली प्रजातियों के लिए स्थान की कमी और व्यवधान आदि।
- ब्लैक-फेसस्पूनबिल और ऑस्प्रे जैसे प्रवासी पक्षियों को प्लास्टिक से घोंसले बनाते हुए देखा गया है, जिसके परिणामस्वरूप प्रायः उनके चूजे उलझ जाते हैं।
CMS या बॉन कन्वेंशन, 1979 के बारे में
- यह प्रजातियों और पर्यावास संरक्षण हेतु सहयोग एवं कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र की एक पर्यावरण संधि है।
- संरक्षण आवश्यकता के आधार पर प्रजातियों को ‘परिशिष्ट एक और दो’ में सूचीबद्ध किया गया है।
- परिशिष्ट एक में वे प्रजातियां हैं, जिनके विलुप्त होने का खतरा विद्यमान है।
- परिशिष्ट दो में वे प्रजातियां हैं, जो उनके संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से लाभान्वित होंगी।
स्रोत – पीआईबी