प्रिवेंटिव डिटेंशन कानून एक औपनिवेशिक कानून
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि प्रिवेंटिव डिटेंशन कानून एक औपनिवेशिक कानून है, इसलिए इसका इस्तेमाल दुर्लभतम मामलों में ही किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने एक डिटेंशन ऑर्डर को रद्द करते हुए कई टिप्पणियां की थी, जिनमें से कुछ निम्नलिखित है –
- न्यायालयों को ऐसे कानूनों से संबंधित मामलों का अत्यधिक सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि सरकार नियंत्रित और संतुलित तरीके से अपनी शक्ति का प्रयोग कर रही है ।
- प्रिवेंटिव डिटेंशन के मामलों में सरकार को प्रत्येक प्रक्रियात्मक सख्ती का पूरी तरह से पालन करना चाहिए ।
- प्रिवेंटिव डिटेंशन (निवारक निरोध) का अर्थ है किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे और अदालत से दोषी सिद्ध हुए बिना ही निरुद्ध करना । इसका उद्देश्य उसे निकट भविष्य में अपराध करने से रोकना होता है।
- संसद पास रक्षा, विदेशी मामलों और भारत की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों के लिए प्रिवेंटिव डिटेंशन का कानून बनाने का विशेषाधिकार है ।
- संसद के साथ-साथ राज्य विधानमंडल भी राज्य की सुरक्षा, कानून-व्यवस्था को बनाए रखने तथा आपूर्ति व सेवाओं के रख-रखाव से जुड़े मुद्दों के लिए ऐसे कानून बना सकते हैं।
- भारत का संविधान अनुच्छेद 22(1)और 22(2) के तहत गिरफ्तारी तथा हिरासत से सुरक्षा प्रदान करता है। यह सुरक्षा प्रिवेंटिव डिटेंशन कानूनों के तहत गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए व्यक्ति के लिए उपलब्ध नहीं है।
- प्रिवेंटिव डिटेंशन के तहत किसी व्यक्ति को तीन महीने तक हिरासत में रखा जा सकता है। इस अवधि को बढ़ाने के लिए एक सलाहकार बोर्ड को पर्याप्त कारणों सहित एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है ।
स्रोत – इंडिया टूडे