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प्रश्न – BT-कपास के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों को स्पष्ट करते हुये इसके भारतीय किसानों पर पड़ने वाले असर की चर्चा करे। – 1 May
उत्तर –
भारत में कपास उत्पादन का एक लंबा इतिहास है। अंग्रेजों के भारत आने से पहले देश में कपास की कई किस्में पैदा की जाती थीं।आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2003-04 में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक और कपास का सातवाँ सबसे बड़ा निर्यातक था। वर्ष 2002 में जीन संवर्द्धित (Genetically Modified-GM) कीट प्रतिरोधी बीटी कपास हाइब्रिड्स (BT-Cotton Hybrids) के आगमन से देश का कपास सेक्टर पूरी तरह से परिवर्तित हो गया। मौजूदा समय में बीटी कपास देश के कपास क्षेत्र का लगभग 95% हिस्सा कवर करता है। हालाँकि आलोचकों का कहना है कि बीटी कपास हाइब्रिड्स ने किसानों, खासकर संसाधनों की कमी से जूझ रहे किसानों, की आजीविका को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है और कृषि संकट में योगदान दिया है।
भारत में कपास उत्पादन का इतिहास
- भारत में ब्रिटिशों के आगमन से पूर्व कपास की विभिन्न किस्में स्वदेशी रूप से देश के विभिन्न भागों में उगाई जाती थीं, जिनमें से प्रत्येक किस्म स्थानीय मिट्टी, पानी और जलवायु के अनुकूल थी।
- अंग्रेज़ों ने भारत में उगाई जाने वाली कपास की किस्मों को निम्न स्तर का मानकर अमेरिका स्थित मिलों की आवश्यकता के अनुरूप वर्ष 1797 में बॉर्बन कपास (Bourbon Cotton) के उत्पादन की शुरुआत की। बॉर्बन कपास ने कपास की उन किस्मों की उपेक्षा की जो कीट प्रतिरोधी और मौसम की अनियमितता से लड़ने में समर्थ थे, परिणामस्वरूप पारंपरिक बीज चयन, कपास की खेती का प्रबंधन और खेती के तरीके प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए।
- कपास की नई किस्में लाभदायक तो थीं, किंतु मौसम और कीट जैसी समस्याओं से निपटने में सक्षम नहीं थीं। आज़ादी के बाद भी इसका उत्पादन जारी रहा। कीटों की समस्या को दूर करने के लिये काफी अधिक मात्रा में कीटनाशक का इस्तेमाल किया जा रहा था। अंततः इस समस्या को नियंत्रित करने के लिये सरकार ने वर्ष 2002 में बीटी-कपास की शुरुआत की।
बीटी (BT) क्या है?
- बेसिलस थुरिनजेनेसिस (Bacillus Thuringiensis-BT) एक जीवाणु है जो प्राकृतिक रूप से क्रिस्टल प्रोटीन उत्पन्न करता है। यह प्रोटीन कीटों के लिये हानिकारक होता है।
- इसके नाम पर ही बीटी फसलों का नाम रखा गया है। बीटी फसलें ऐसी फसलें होती हैं जो बेसिलस थुरिनजेनेसिस (BT) नामक जीवाणु के समान ही विषाक्त पदार्थ को उत्पन्न करती हैं ताकि फसल का कीटों से बचाव किया जा सके।
हाइब्रिड कपास नीति
- ज्ञात हो कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जो हाइब्रिड के रूप में कपास का उत्पादन करता है। हाइब्रिड्स को अलग-अलग आनुवंशिक गुणों वाले दो मूल उपभेदों के संगम से बनाया जाता है।
- देश में बीटी कपास हाइब्रिड के वाणिज्यिक प्रयोग को सरकार द्वारा वर्ष 2002 में मंज़ूरी दी गई थी। इस प्रकार के पौधों में मूल उपभेदों की अपेक्षा अधिक पैदावार की क्षमता होती है।हाइब्रिड्स को उत्पादन के लिये उर्वरक तथा पानी की काफी अधिक आवश्यकता होती है।
- उल्लेखनीय है कि भारत के अतिरिक्त कपास का उत्पादन करने वाले अन्य सभी देश कपास के हाइब्रिड रूप का उत्पादन नहीं करते, बल्कि वे उन किस्मों का प्रयोग करते हैं जिनके लिये बीज स्व-निषेचन (Self-Fertilization) द्वारा उत्पादित किये जाते हैं।
हाइब्रिड कपास नीति का भारतीय किसानों पर प्रभाव
- चूँकि हाइब्रिड बीजों के माध्यम से उत्पादन करने के लिये किसानों को हर बार नया बीज खरीदना पड़ता है, इसलिये यह किसानों को आर्थिक रूप से काफी प्रभावित करता है।
- हाइब्रिड बीजों का उत्पादन केवल कंपनियों द्वारा ही किया जाता है, जिसके कारण मूल्य निर्धारित की शक्ति भी उन्ही के पास होती है, परिणामस्वरूप कीमतों पर नियंत्रण करना मुश्किल हो जाता है।
क्या भारतीय किसानों के लिये लाभप्रद है BT कपास?
इस विषय पर विभिन्न विश्लेषकों का अलग-अलग मत है। निश्चित रूप से बड़े किसानों और कॉरपोरेट क्षेत्र को बीटी-कपास की शुरुआत से लाभ हुआ है, किंतु देश के मध्यम और छोटे किसानों को बीटी-कपास के कारण नुकसान का सामना करना पड़ता है।
- राज्यसभा की 301वीं समिति की रिपोर्ट के अनुसार, कीटनाशकों के उपयोग से मूल्य और मात्रा दोनों में काफी वृद्धि हुई है।
- किसानों को बीटी कपास के बीज के लिये पारंपरिक बीजों की कीमत का लगभग तीन गुना भुगतान करने के लिये मजबूर किया गया, जिससे उनकी ऋणग्रस्तता और उपज पर निर्भरता काफी अधिक बढ़ गई।
- ऋणग्रस्तता में वृद्धि से किसानों की आत्महत्या दर में वृद्धि हुई।
इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत में बीटी-कपास ने भारतीय कपड़ा क्षेत्र को बहुत प्रोत्साहन दिया और इस तरह से बहुत सारे रोज़गार पैदा हुए, किंतु इस माध्यम से जो लाभ अर्जित किये गए वे प्रकृति में अल्पकालिक थे, दीर्घकाल में इसने देश के कपास उद्योग को किस प्रकार प्रभावित किया है इसे हाल के संकट में देखा जा सकता है।
अतः यह बीटी-कपास को प्रतिस्थापित करने के लिये एक बेहतर और न्यायसंगत विकल्प की तलाश करने का सही समय है। इस संदर्भ में स्वदेशी रूप से विकसित कपास बीजों का सहारा लिया जा सकता है।