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प्रश्न – 1931 में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन का भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में योगदान की चर्चा कीजिए। – 3 May
उत्तर –
गांधी-इरविन समझौते या दिल्ली समझौते को स्वीकृति प्रदान करने के लिये कांग्रेस का अधिवेशन 29 मार्च, 1931 में कराची में आयोजित किया गया। वल्लभ भाई पटेल इसके अध्यक्ष थे।
कराची में कांग्रेस का प्रस्ताव:
कांग्रेस ने दो मुख्य प्रस्तावों को अपनाया- इनमें से एक मौलिक अधिकारों और दूसरा राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रमों से सम्बद्ध था। इन प्रस्तावों के कारण कराची सत्र एक यादगार सत्र बन गया। मौलिक अधिकारों से सम्बद्ध प्रस्ताव में निम्न प्रावधानों को सुनिश्चित किया गया:
- अभिव्यक्ति एवं प्रेस की पूर्ण स्वतंत्रता।
- संगठन बनाने की स्वतंत्रता।
- सार्वभौम वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनावों की स्वतंत्रता।
- सभा एवं सम्मेलन आयोजित करने की स्वतंत्रता।
- जाति, धर्म एवं लिंग इत्यादि से हटकर कानून के समक्ष समानता का अधिकार।
- सभी धर्मो के प्रति राज्य का तटस्थ भाव।
- निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की गारंटी।
- अल्पसंख्यकों तथा विभिन्न भाषाई क्षेत्रों की संस्कृति, भाषा एवं लिपि की सुरक्षा की गारंटी।
राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रमों से सम्बद्ध जो प्रस्ताव पारित किये गये, उनमें सम्मिलित थे:
- लगान और मालगुजारी में उचित कटौती।
- अलाभकर जोतों को लगान से मुक्ति।
- किसानों को कर्ज से राहत और सूदखोरों पर नियंत्रण।
- मजदूरों के लिये बेहतर सेवा शर्ते, महिला मजदूरों की सुरक्षा तथा काम के नियमित घंटे।
- मजदूरों और किसानों को अपने यूनियन बनाने की स्वतंत्रता।
- प्रमुख उद्योगों, परिवहन और खदान को सरकारी स्वामित्व एवं नियत्रंण में रखने का वायदा।
इस अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार पूर्ण स्वराज्य को परिभाषित किया और बताया कि जनता के लिये पूर्ण स्वराज्य का अर्थ क्या है। कांग्रेस ने यह भी घोषित किया कि ‘जनता के शोषण को समाप्त करने के लिये राजनीतिक आजादी के साथ-साथ आर्थिक आजादी भी आवश्यक है’।
निष्कर्ष:
कांग्रेस का कराची प्रस्ताव वास्तविक रूप से कांग्रेस की मूलभूत राजनीतिक व आर्थिक नीतियों का दस्तावेज था, जो बाद के वर्षों में भी निरंतर बरकरार रहा।