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प्रश्न – हाथ से मैला उठाने की प्रथा जिसे, अमानवीय और मर्यादाहीन कार्यों के संवर्ग में रखा गया है , अभी भी भारत में प्रचलित है। इसके पीछे कारणों को व्याख्या करें तथा इसके प्रभावी निदान हेतु उपायों का सुझाव दीजिये। – 8 April
उत्तर:
कई महत्त्वपूर्ण प्रावधानों और अनेक पहलों के बाद भी भारत में हाथ से मैला ढोने की प्रथा आज भी यथावत जारी है। वास्तव में , यह प्रथा एक वर्ग विशेष से जुड़ी हुई है, जबकि संविधान का अनुच्छेद 46 कहता है कि राज्य, समाज के कमज़ोर वर्गों मुख्य रूप से अनुसूचित जाति और जनजाति की सामाजिक अन्याय आदि से रक्षा करेगा और उन्हें हर तरह के शोषण का शिकार होने से सुरक्षित रखेगा।
हाल ही में केंद्र सरकार ने ‘हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ में संशोधन किये जाने का प्रस्ताव किया गया है। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट को देखने के बाद इस संशोधन का विचार किया गया है , जिसके आँकड़ों के अनुसार, पिछले पाँच वर्षों में देश में ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग’के कारण 376 लोगों की मृत्यु हुयी जबकि इसमें से 110 मौतें अकेले वर्ष, 2019 में ही हुई थी। प्रस्तावित संशोधन के अंतर्गत सीवरों और सेप्टिक टैंकों की मशीनीकृत सफाई को अनिवार्य करने का प्रावधान किया गया है, इसके साथ ही इसके उल्लंघन की शिकायत दर्ज कराने के हेतु एक 24×7 हेल्पलाइन की स्थापना भी की जाएगी।
हाथ से मैला उठाने की प्रथा के प्रचलन के कारण:
- सामंजस्यरहित शौचालयों का निर्माण: भारत में बड़ी संख्या में शौचालय, हाथ से अपशिष्ट हटाने की ज़रूरत वाले है। यहाँ तक कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनाए जा रहे शौचालयों के गड्ढे इतने छोटे हैं कि ये जल्दी ही मानवीय अपशिष्टों से भर पूरे जाएंगे। ऐसे में शौचालयों का विसंगतियुक्त एवं अविवेकी निर्माण इस प्रथा के जारी रहने का एक बड़ा कारण है।
- सुरक्षा उपकरणों का अभाव: मैनुअल स्कैवेंजिंग में मृत्यु के मामलों में वृद्धि का सबसे बड़ा कारण यह है कि अधिकांशतः मैनहोल को साफ कर रहे लोगों के पास पर्याप्त कुशल उपकरण और सुरक्षात्मक समान नहीं होते हैं। इस कार्य में लगे लोग अक्सर बाल्टी, झाड़ू, बांस और टोकरी जैसे बुनियादी और कम कुशल उपकरणों का ही प्रयोग करते हैं।
- राज्य सरकारों का उदासीन रूख : तमाम कानूनी दायित्वों के बावजूद, राज्य सरकारें उन शौचालयों के पुनर्निर्माण के लिये उत्सुकता नहीं दिखाती हैं, जहाँ हाथ से मैला साफ करने की ज़रूरत पड़ती है। राज्य सरकारें “सफाई कर्मचारी” के तौर पर नियुक्त कर्मियों द्वारा ही यह काम कराती हैं। वास्तव में, मैनुअल स्कैवेंजर्स को परिभाषित करने को लेकर भी स्पष्टता का अभाव है।
- सामाजिक मुद्दे:मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा भारत की जाति व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जहाँ तथाकथित निचली जातियों द्वारा ही इस काम को किये जाने की उम्मीद की जाती है। यद्धपि कानूनों के माध्यम से रोज़गार के रूप में मैनुअल स्कैवेंजिंग को प्रतिबंधित किया गया है परंतु, इसके साथ जुड़ा कलंक और भेदभाव अभी भी प्रचलित है।यह सामाजिक भेदभाव मैनुअल स्कैवेंजिंग को छोड़ चुके श्रमिकों के लिये आजीविका के नए या वैकल्पिक माध्यम प्राप्त करना कठिन बना देता है।फलतः लोगों को अपने परिवार के भरण-पोषण के लिये अन्य अवसरों की अनुपस्थिति के कारण एक बार पुनः मैनुअल स्कैवेंजिंग की ओर ही लौटना पड़ता है।
- प्रशासनिक जवाबदेही का अभाव:यदि कोई प्रशासन इस प्रथा पर अंकुश नहीं लगा पाता तो उसके लिये क्या दंडात्मक प्रावधान हों, इस संबंध में कोई दंडात्मक विधान नहीं है।
मैनुअल स्कैवेंजिंग के विरुद्ध नियम, कानून और प्रमुख पहलें :
- ‘नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 के अंतर्गत, अस्पृश्यता पर आधारित, मैला ढोने या झाड़ू लगाने जैसी कुप्रथाओं के उन्मूलन के विषय को प्रमुखता दिया गया था। वर्ष 1956 में काका कालेलकर आयोग ने शौचालयों की सफाई के मशीनीकरण की आवश्यकता को रेखांकित किया था। कालांतर में , मलकानी समिति (1957) और पंड्या समिति (1968)के आधार पर, भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग की सेवा शर्तों को विनियमित किया गया ।
- “मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013” के तहत मैनुअल स्कैवेंजिंग को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया गया है।इसके अलावा इस अधिनियम के अंतर्गत नालियों, सीवर टैंकों, सेप्टिक टैंकों को बिना किसी सुरक्षा उपकरण के, मैन्युअल(हाथ से) रूप से साफ करने के लिये लोगों को रोज़गार देना या उन्हें इससे सम्मिलित करने को एक दंडनीय अपराध माना है। इस अधिनियम में राज्य सरकारों और नगरपालिका निकायों को हाथ से मैला ढोने वाले लोगों की पहचान कर परिवार सहित उनके पुनर्वास के प्रबंधन की बात की गयी है। साथ ही, मैला ढोने वाले कर्मियों को प्रशिक्षण, ऋण और आवास प्रदान करने की भी व्यवस्था की गई है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सीवर की सफाई के दौरान मृत्यु के प्रत्येक मामले में पीड़ित परिवार को मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान करने का प्रावधान किया गया था।
निदान :
- सामाजिक जागरूकता: मैनुअल स्कैवेंजिंग से जुड़े सामाजिक पहलुओं के प्रभावी निपटान से पहले यह अवश्य ही स्वीकार करना होगा कि आज भी यह कुप्रथा जाति और वर्ण व्यवस्था से मजबूती के साथ जुड़ी हुई है, साथ ही इसके पीछे के कारणों को समझाना भी आवश्यक है। इस कुप्रथा के अंत के लिये लोगों को मैनुअल स्कैवेंजिंग के दौरान मानव अधिकार के जघन्य उल्लंघन के बारे में लोगों को जागरूक करना आवश्यक है।
- सख्त कानूनी प्रावधान: हाथ से मैला उठाने की प्रथा को समाप्त करने से जुड़े पूर्व के प्रयासों के कारण, इसके मामलों में कमी आई है परंतु फिर भी देश के अधिकांश हिस्सों में यह प्रथा अभी भी प्रचलित है, ऐसी स्तिथि में इस कुप्रथा के समाधान हेतु तकनीकी विकल्पों को बढ़ावा दिये जाने के साथ मैनुअल स्कैवेंजिंग से जुड़े कानूनों को और मजबूत किये जाने को प्रमुखता देने जी आवश्यकता है।
- पुनर्वास एवं वैकल्पिक रोज़गार: इस कुप्रथा का प्रभावी निदान तभी संभव है जब हाथ से अपशिष्ट उठाने वालों के लिये पुनर्वास एवं वैकल्पिक रोज़गार की उचित व्यवस्था की जाए। यदि कर्मचारी इस प्रथा को छोड़ , किसी अन्य रोजगार की ओर उन्मुख हो तो उसके पास पर्याप्त विकल्प उपलब्ध रहें।