प्रश्न – समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है, क्यों की एकीकृत राष्ट्र का आशय एकरूपता होना नहीं है। सामान सिविल संहिता के गुणों एवं दोषों की विवेचना करें।
उत्तर –
- भारतीय संविधान के भाग-4 (राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत) के तहत, अनुच्छेद-44 के अनुसार, भारत के सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता होगी। इसका व्यावहारिक अर्थ यह है कि भारत के सभी धर्मों के नागरिकों के लिए एक समान धर्मनिरपेक्ष कानून होना चाहिए। संविधान के संस्थापकों ने राज्य के नीति निदेशक तत्वों के माध्यम से इसे लागू करने की जिम्मेदारी बाद की सरकारों को हस्तांतरित कर दी।
- भारत में अधिकांश पर्सनल लॉ धर्म पर आधारित हैं। हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्मों के व्यक्तिगत कानून हिंदू कानून द्वारा शासित होते हैं, जबकि मुस्लिम और ईसाई धर्मों के अपने व्यक्तिगत कानून होते हैं। मुसलमानों का कानून शरीयत पर आधारित है, जबकि अन्य धार्मिक समुदायों के व्यक्तिगत कानून भारतीय संसद द्वारा बनाए गए कानून पर आधारित हैं। अभी तक गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहां समान नागरिक संहिता लागू है।
धर्मों के बीच भेदभाव को समाप्त करने के साधन के रूप में समान नागरिक संहिता के गुण:
- यह धर्म को व्यक्तिगत कानूनों से अलग करेगा। साथ ही यह पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए न्याय के मामले में समानता सुनिश्चित करेगा, चाहे वे किसी भी धर्म के हों।
- विवाह, उत्तराधिकार, तलाक आदि के संबंध में सभी भारतीयों के लिए कानून की एकरूपता सुनिश्चित करना।
- इससे महिलाओं की स्थिति में सुधार करने में मदद मिलेगी, क्योंकि भारतीय समाज काफी हद तक पितृसत्तात्मक है, जिसमें प्राचीन धार्मिक नियम पारिवारिक जीवन को नियंत्रित करते हैं और महिलाओं को अधीन करते हैं।
- जाति पंचायत जैसे अनौपचारिक निकाय पारंपरिक कानूनों के आधार पर निर्णय देते हैं। एक समान संहिता पारंपरिक कानूनों के बजाय वैधानिक कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करेगी।
- यह भारतीय अखंडता को मजबूत करने में सहायक हो सकता है, क्योंकि व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता विभिन्न समुदायों को करीब लाने के लिए अनुकूल वातावरण बनाती है।
समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का दोष:
- समान नागरिक संहिता का मुद्दा किसी सामाजिक या व्यक्तिगत अधिकारों के मुद्दे से हटकर एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है, इसलिये जहाँ एक ओर कुछ राजनीतिक दल इस मामले के माध्यम से राजनीतिक तुष्टिकरण कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कई राजनीतिक दल इस मुद्दे के माध्यम से धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास कर रहे हैं।
- हिंदू धर्म या किसी अन्य धर्म के मामलों में परिवर्तन उस धर्म के बहुमत के समर्थन के बिना नहीं किया गया है, इसलिए धार्मिक समूहों के स्तर पर राजनीतिक और न्यायिक प्रक्रियाओं के साथ-साथ मानसिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना आवश्यक है।
- मिश्रित संस्कृति की विशेषता को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि समाज में किसी भी धर्म के प्रति असंतोष से अशांति की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
समाज की प्रगति और समरसता के लिए उस समाज में विद्यमान सभी दलों में समानता की भावना का होना बहुत आवश्यक है। इसलिए यह अपेक्षा की जाती है कि बदलती परिस्थितियों को देखते हुए समाज की संरचना बदलनी चाहिए। अभी देश में विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के लोगों के लिए। विवाह, संतान गोद लेना, संपत्ति या विरासत आदि के संबंध में अलग-अलग नियम हैं। इसलिए, एक धर्म में जो कुछ भी प्रतिबंधित है, वही बात अन्य संप्रदायों में खुले तौर पर अनुमति है।
आजादी के बाद से ही सभी धर्मों के लिए ऐसा कानून बनाने की बात होती रही है जो सभी पर समान रूप से लागू हो। हालांकि, अभी तक आम सहमति नहीं बन पाई है। अतीत में हिंदू कोड बिल और अब तत्काल तीन तलाक पर कानून को इस दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।