प्रश्न – वैश्विक आर्थिक महामंदी (1929-32) से निपटने के लिए किए नीतिगत उपायों पर चर्चा कीजिए। – 24 May 2021
उत्तर – भूमिका
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था एक नाजुक व्यवस्था है, जिसमें किसी एक गड़बड़ी का असर तेजी से दुनिया के सभी हिस्सों पर पड़ता है। विश्व आर्थिक मंदी एक गंभीर आर्थिक समस्या थी जिसने पूरी दुनिया को प्रभावित किया, और विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका को अत्यंत भयावह कठिनाइयो का सामना करना पड़ा। यह मंदी अत्यधिक व्यापक थी,जिसके कारण इसके समाधान के उपाय भी जटिल सिद्ध हुए।
वैश्विक आर्थिक महामंदी (1929-32) से निपटने के लिए किए गए नीतिगत उपाय:
- 1932 में लाउसेन सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसके तहत जर्मनी की युद्ध मुआवजा की राशि को समाप्त कर दिया गया।
- 1933 में, फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट के नेतृत्व में एक नई सरकार गठन हुआ। इसमें किसानों के लिए वित्तीय सहायता और अधिक रोजगार सृजन करने के लिए एक रचनात्मक प्रोग्राम शामिल थे, बैंकों को अधिक बारीकी से विनियमित किया गया तथा बचत को बेहतर तरीके से संरक्षित किया गया था।
- जर्मनी एवं फ्रांस के द्वारा सार्वजनिक व्यय में कटौती करने का प्रयास किया गया।
- वहीं ब्रिटेन ने बजट नियंत्रण की नीति अपनायी। वह भी कारगर नहीं रही। फिर पूंजीवादी देशों ने अपने गृह उद्योगों को बचाने के लिए एक दूसरे के विरूद्ध चुंगी की दीवार स्थापित करने का प्रयास किया। इस कारण से एक प्रकार का चुंगी युद्ध छिड़ गया।
- उसी प्रकार विभिन्न देशों के द्वारा स्वर्णमान त्यागकर निर्यात संवर्द्धन के लिए मुद्रा के अवमूल्यन की नीति, जिसे एक अर्थशास्त्री जॉनसन ने ‘Beggar thy neighbour policy’ का नाम दिया है, अपनायी गयी, किंतु उपर्युक्त सभी तरीके अप्रभावी ही सिद्ध हुए थे।
- आगे जर्मनी के नाजी सरकार ने रोजगार संवर्द्धन के लिए सार्वजनिक निर्माण पर बल दिया। यह तरीका बहुत कारगर रहा, किंतु इसने जर्मन अर्थव्यवस्था को युद्ध के पक्ष में मोड़ दिया। दूसरी तरफ संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डी. रूजवेल्ट के द्वारा न्यूडील की नीति के माध्यम से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप कर मांग वृद्धि के लिए कदम उठाया गया। यह कदम बहुत प्रभावी सिद्ध हुआ। कितु इसने पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के स्वरूप में परिवर्तन ला दिया। यह पूंजीवाद राजकीय हस्तक्षेप पर आधारित था, मुक्त अर्थव्यवस्था के सिद्धांत पर नहीं।
निष्कर्ष:
1929-32 की विश्व आर्थिक महामंदी पूंजीवाद पर आया पहला बड़ा संकट था जिसके सामने पूंजीवादी अवधारणा लड़खड़ाने लगी, साथ ही पूंजीवाद के सामानांतर समाजवाद की अवधारणा को बल मिला।