प्रश्न – विश्व व्यापार में संरक्षणवाद और मुद्रा में हेरफेर की हालिया घटना भारत की मैक्रो-आर्थिक स्थिरता को कैसे प्रभावित करेगी ? – 7 May
उत्तर –
विश्व व्यापार में संरक्षणवाद, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित या नियंत्रित करने के सरकारी कार्यों और नीतियों को संदर्भित करता है| (जैसे: यू.एस.ए ने दुनिया भर के अरबों डॉलर के सामान पर टैरिफ लगा दिया है, हाल ही में सभी स्टील आयात पर 25% टैरिफ, और एल्यूमीनियम पर 10% टैरिफ)। संरक्षणवाद का उपयोग एक राष्ट्र को आर्थिक मंदी से उबरने में मदद करने के इरादे से किया जाता है। मुद्रा हेरफेर का अर्थ विभिन्न सरकारों द्वारा अन्य विदेशी मुद्राओं के सापेक्ष अपनी मुद्राओं के मूल्य को बदलने के लिए की गई कार्रवाइयों से है (जैसे: चीन नियमित रूप से अन्य मुद्राओं के सापेक्ष अपनी मुद्रा रेनमिनबी (आरएमबी) के मूल्य परिवर्तन में हस्तक्षेप करता है।)। हाल के समय में, वैश्विक अर्थव्यवस्था में इन दोनों घटनाओं में तेजी देखी गई। संरक्षणवाद के साथ-साथ मुद्रा हेरफेर को विरूपणकारी व्यापार प्रथाओं और वैश्विक मुक्त व्यापार के लिए एक प्रतिकूल कारक के रूप में देखा जाता है।
भारत की वृहद आर्थिक स्थिरता पर इन घटनाओं के प्रभाव हैं:
- मुद्रास्फीति: मुद्रा में हेरफेर (सामान्यतया मूल्यह्रास) महंगे आयात के परिणामस्वरूप किया जाता है जो उपभोक्ताओं की विकल्प को सीमित करता है और वे माल और उत्पादों की सीमित मात्रा के लिए अधिक भुगतान करने को विवश हो जाते हैं, जिससे परिणाम स्वरुप मुद्रास्फीति होती है। इसी तरह संरक्षणवाद भी उपभोक्ताओं की पसंद/विकल्पों को सीमित कर देता है। कुल मिलाकर, वैश्विक प्रतिस्पर्धा कई वस्तुओं और उत्पादों की कीमत को नियन्त्रण में रखने का एक महत्वपूर्ण कारक है और उपभोक्ताओं को अपने विवेक से खर्च करने की क्षमता प्रदान करता है।
- आर्थिक विकास: संरक्षणवाद आयात लागत में वृद्धि की ओर जाता है, क्योंकि निर्माताओं और उत्पादकों को विदेशी बाजारों के लिए उपकरण, सामान और मध्यवर्ती उत्पादों के लिए अधिक भुगतान करना पड़ता है। इससे वास्तविक जीडीपी कम होगी।
- रोजगार: संरक्षणवाद न केवल वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह को सीमित करने के बारे में है, बल्कि कुशल मानव संसाधनों को भी संदर्भित करता है। इस पर किसी भी प्रतिबंध से न केवल बेरोजगारी बढ़ेगी, बल्कि विकास में भी बाधा आएगी।
- चालू खाता घाटा: एक मजबूत निर्यात आधार की अनुपस्थिति में, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बनने वाले मध्यवर्ती उत्पाद, संरक्षणवाद के कारण अधिक महंगे हो जाते हैं, जिससे चालू खाता घाटा बढ़ जाता है। उच्च चालू खाता घाटा रुपये में और दबाव डालता है, विदेशी उधार की लागत को और बढ़ा देता है।
- उद्योगों पर प्रभाव: संरक्षणवाद नए उद्योग की अक्षमताओं को बढ़ावा दे सकता है क्योंकि इसमें प्रौद्योगिकी के उपयोग और दीर्घकालिक निवेश के माध्यम से खुद को कुशल बनाने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं होगा।
- निर्यात पर प्रभाव: 2018-19 में मौद्रिक नीतियों में, आरबीआई ने लगातार देखा कि संरक्षणवाद भारत की विकास दर को चुनौती देता है, क्योंकि यह भारतीय निर्यात को प्रभावित करता है, खासकर कपड़ा, दवा, रत्न और आभूषण क्षेत्र में। इसने रोजगार सृजन क्षमता को भी प्रभावित किया है।
चूंकि, भविष्य में आने वाले समय में संरक्षणवाद और मुद्रा जोड़तोड़ रुकते नहीं दिखते हैं, इसलिए भारत के लिए इन विकृत दुविधाओं से सावधानी से बच के चलना आवश्यक है। भारतीय नीति निर्माताओं को, वैश्विक दुनिया की मौजूदा अनिश्चितताओं के जवाब में, अभिनव और लचीला होना पड़ेगा ।