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प्रश्न – विधि के प्रश्न के सन्दर्भ में , भारतीय संविधान का अनुच्छेद-131, केन्द्र एवं राज्य के मध्य संतुलन बनाये रखने के लिए सर्वोच्य न्यालयाय का एक उपयोगी हथियार है. सिद्ध करें। – 25 May 2021
उत्तर –
अनुच्छेद 131 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट भारतीय संघ की विभिन्न इकाइयों – केंद्र और राज्यों के बीच या दो या दो से अधिक राज्यों के बीच विवादों का फैसला करता है। इस अनुच्छेद के द्वारा, सुप्रीम कोर्ट के पास अपीलीय क्षेत्राधिकार के खिलाफ मामले की पहली सुनवाई करने की शक्ति होगी, जिसमें शीर्ष अदालत को निचली अदालत के फैसले की समीक्षा करनी होती है।
अनुच्छेद-131 में वर्णित प्रावधान :
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-131 सर्वोच्च न्यायालय को भारत के संघीय ढाँचे की विभिन्न इकाइयों के बीच किसी विवाद पर आरंभिक अधिकारिता की शक्ति प्रदान करता है। ये विवाद निम्नलिखित हैं-
- केंद्र तथा एक या अधिक राज्यों के बीच।
- केंद्र और कोई राज्य या राज्यों का एक ओर होना एवं एक या अधिक राज्यों का दूसरी ओर होना।
- दो या अधिक राज्यों के बीच।
संविधान के अनुच्छेद-131 के अंतर्गत राज्य और केंद्र के मध्य उन विवादों की सुनवाई की जा सकती है, जिनमें तथ्य या विधि का प्रश्न निहित हो, और वे मुद्दे जिस पर राज्य या केंद्र के कानूनी अधिकार का अस्तित्त्व निर्भर करता है। अतः इस अनुच्छेद-131 का उपयोग राजनीतिक भावना से प्रेरित विवादों को निपटाने के लिए नहीं किया जा सकता है। 2016 में, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के बीच विवाद की सुनवाई के लिए असहमति जताई थी। यदि कोई नागरिक केंद्र या राज्य के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करता है, तो उसे इस अनुच्छेद के तहत नहीं लिया जाएगा।
केरल और छत्तीसगढ़ से संबंधित विवाद:
- केरल सरकार ने याचिका दायर करते हुए कहा कि, केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 256 के तहत नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का पालन करने के लिए राज्यों को मजबूर किया जाएगा, जो ‘स्पष्ट रूप से एकतरफा, अनुचित, तर्कहीन और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन’ होगा।
- केरल सरकार ने उच्चतम न्यायलय से अनुरोध किया कि, CAA को संविधान के अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता), अनुच्छेद 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 25 के सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाले कानून के रूप में घोषित किया जाये।
- केरल के अलावा, छत्तीसगढ़ सरकार ने भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अधिनियम, 2008 को असंवैधानिक घोषित करने के लिए अनुच्छेद -131 का उपयोग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की है।
- छत्तीसगढ़ सरकार के अनुसार, अधिनियम ‘पुलिस’ के संबंध में राज्य सरकारों की संप्रभुता का उल्लंघन करता है। यह ध्यान दिया जा सकता है कि, संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, ‘पुलिस’ राज्य सूची का विषय है।
अनुच्छेद-131 से संबंधित अन्य विवाद:
- आरंभिक/मूल अधिकारिता को लेकर पहला मामला वर्ष 1961 में पश्चिम बंगाल बनाम भारत संघ का था जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार ने संसद द्वारा पारित कोयला खदान क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) अधिनियम, 1957 को न्यायालय में चुनौती दी थी।
- वर्ष 1978 में, कर्नाटक राज्य बनाम भारत संघ के मामले में, न्यायमूर्ति पीएन भगवती ने फैसला सुनाया कि राज्य को यह दिखाने की आवश्यकता नहीं है कि उसके कानूनी अधिकार का उल्लंघन किया गया है, लेकिन एक कानूनी प्रश्न मौजूद होना चाहिए।
- उक्त मामले में कहा गया था कि कानून की संवैधानिकता की जांच अनुच्छेद-131 द्वारा की जा सकती है, लेकिन 2011 में मध्य प्रदेश राज्य बनाम भारत संघ के मामले में अदालत का फैसला इससे अलग था. हालांकि यह मामला कोर्ट की तीन जजों की बेंच के समक्ष भी विचाराधीन है।
- वर्ष 2012 को झारखंड बनाम बिहार राज्य का मामला जिसमें अविभाजित बिहार राज्य में रोज़गार अवधि के लिये झारखंड के कर्मचारियों को पेंशन का भुगतान करने हेतु बिहार के दायित्त्व का मुद्दा शामिल है। यह मामला भी न्यायालय की बड़ी खंडपीठ की सुनवाई के लिये लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट को राजनीति से प्रेरित याचिकाओं पर सुनवाई से बचने की कोशिश करनी चाहिए। साथ ही, राज्यों के प्रतिनिधियों को संसद के समक्ष कानून बनाने के समय किसी भी कानून के संबंध में अपनी चिंताओं को रखना चाहिए। ज्ञात रहे कि संघवाद एक दोतरफा सड़क की तरह है, जिसमें दोनों पक्षों को एक-दूसरे की सीमाओं का सम्मान करना चाहिए, जो संविधान द्वारा निर्धारित हैं। जब तक न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से किसी अधिनियम को शून्य या असंवैधानिक घोषित नहीं किया जाता है, तब तक राज्य केंद्रीय कानूनों को लागू करने के लिए बाध्य हैं।