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प्रश्न – विचार की सामग्री के रूप में धर्मनिरपेक्षता पर बहस हो सकती है, लेकिन एक लक्ष्य के रूप में इसकी वैधता संदेह से परे है। विश्लेषण करे. – 18 May 2021
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता जीवन का एक आधुनिक दृष्टिकोण है, एक जटिल और गतिशील अवधारणा है। इस अवधारणा का पहली बार यूरोप में उपयोग किया गया था। यह एक विचारधारा है जिसमें धर्म और धर्म से संबंधित विचारों को जानबूझकर वर्तमान दुनिया से संबंधित मामलों से दूर रखा जाता है, यानी तटस्थ रखा जाता है। धर्मनिरपेक्षता राज्य को किसी विशेष धर्म को सुरक्षा प्रदान करने से रोकती है।
संवैधानिक दृष्टिकोण से धर्मनिरपेक्षता :
- भारतीय परिप्रेक्ष्य में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा संविधान के निर्माण के समय से ही इसमें अंतर्निहित थी, जो संविधान के भाग-3 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)) में वर्णित मौलिक अधिकारों में स्पष्ट है।
- 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित करते हुए, ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द को इसकी प्रस्तावना में जोड़ा गया।
- यहां धर्मनिरपेक्षता का मतलब है कि भारत सरकार धर्म के मामले में तटस्थ रहेगी। इसका अपना कोई धार्मिक पंथ नहीं होगा और देश के सभी नागरिकों को अपनी इच्छा के अनुसार धार्मिक पूजा का अधिकार होगा। भारत सरकार न तो किसी धार्मिक पंथ का समर्थन करेगी और न ही किसी धार्मिक पंथ का विरोध करेगी।
- पंथनिरपेक्ष राज्य धर्म के आधार पर किसी नागरिक से भेदभाव न कर प्रत्येक व्यक्ति के साथ समान व्यवहार करता है।
धर्मनिरपेक्षता का महत्त्व:
भारतीय धर्मनिरपेक्षता अपने आप में एक अनूठी अवधारणा है जिसे भारतीय संस्कृति की विशेष आवश्यकताओं और विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए अपनाया गया है। इसके महत्त्व को निम्न बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है-
- धर्मनिरपेक्षता समाज में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा तर्कवाद को प्रोत्साहित करता है और एक आधुनिक धर्मनिरपेक्ष राज्य का आधार बनाता है।
- एक धर्मनिरपेक्ष राज्य धार्मिक दायित्वों से स्वतंत्र होता है सभी धर्मों के प्रति एक सहिष्णु रवैया अपनाता है।
- व्यक्ति अपनी धार्मिक पहचान के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होता है इसलिये वह किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह के हिंसापूर्ण व्यवहार के विरुद्ध सुरक्षा प्राप्त करना चाहेगा। यह सुरक्षा सिर्फ धर्मनिरपेक्ष राज्य ही प्रदान कर सकता है।
- धर्मनिरपेक्ष राज्य नास्तिकों के भी जीवन और संपत्ति की रक्षा करता है साथ ही उन्हें अपने तरीके की जीवन शैली और जीवन जीने का अधिकार भी प्रदान करता है।
इस प्रकार धर्मनिरपेक्षता एक सकारात्मक, क्रांतिकारी और व्यापक अवधारणा है, जो विविधता को मज़बूती प्रदान करता है।
वैधता को प्रश्नगत करने का कारण :
- धर्म निरपेक्षता के विषय में यह भी कहा जाता है कि यह पश्चिम से आयातित है, अर्थात इसाईयत से प्रेरित है, लेकिन यह ठीक आलोचना नहीं है। दरअसल भारत में धर्मनिरपेक्षता को प्राचीन काल से ही अपनी एक विशिष्ट पहचान रही है, यह कहीं और से आयातित नहीं बल्कि मौलिक है।
- कुछ आलोचकों का तर्क है कि धर्म निरपेक्षता धर्म विरोधी है, लेकिन भारतीय धर्म निरपेक्षता धर्म विरोधी नहीं है। इसमें सभी धर्मों को उचित सम्मान दिया गया है। उल्लेखनीय है कि धर्म निरपेक्षता संस्थाबद्ध धार्मिक वर्चस्व का विरोध तो करती है लेकिन यह धर्म विरोधी होने का पर्याय नहीं है।
- यह आरोप लगाया जाता है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता राज्य द्वारा संचालित होती है। अल्पसंख्यकों को शिकायत है कि राज्य को धर्म के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये। उल्लेखनीय है कि तीन तलाक के मसले पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का यह कहना था कि सामाजिक सुधारों के नाम पर राज्य द्वारा निजी कानूनों में दखल दिया जा रहा है। वहीं जैन धर्मावलंबी अपनी संथारा प्रथा का बचाव उसके हजारों सालों से चले आने के आधार पर कर रहे हैं।
सरकार को चाहिये कि वह रुचिपूर्वक इसका सरंक्षण सुनिश्चित करे,क्योकि धर्मनिरपेक्षता को न्यायालय द्वारा संविधान के मूल ढाँचे का हिस्सा मान लिया गया है। धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक जनादेश का पालन सुनिश्चित करने के लिये एक आयोग का गठन भी किया जाना चाहिये। जनप्रतिनिधियों को ध्यान में रखना चाहिये कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में धर्म एक विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत और निजी मामला होता है। अंत उसे केवल वोट बैंक के लिये राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिये। साथ ही राजनीति को धर्म से अलग करके देखा जाना चाहिये।