प्रश्न – भूमिगत विद्रोही को एक पौराणिक आभा की आवश्यकता होती है। उग्रवाद उतना ही वास्तविकता है जितना कि मिथक, जिसे समाज विद्रोही के चारों ओर बुनता है।उक्त पंक्ति के आलोक में “शहरी नक्सल” पर टिप्पणी करें । – 28 August 2021
उत्तर – भूमिगत विद्रोही
- देश की पीढ़ी को भारत की संस्कृति से अलग करने की कोशिश को शहरी नक्सलवाद कहा जा सकता है। शहरी नक्सली मुख्यतः चरम वामपंथी, माओवादी विचारधारा के लोग हैं जिनका एक ही एजेंडा है हिंदुस्तान के खिलाफ काम करना।
- 2004 में ‘शहरी परिप्रेक्ष्य: हमारे कार्य में शहरी क्षेत्र’ नामक एक सीपीआई (माओवादी) दस्तावेज़ शहरी नक्सलवादी रणनीति पर विस्तारित था। मुख्य रूप से इसने शहरी क्षेत्रों का नेतृत्व और विशेषज्ञता हासिल करने पर ध्यान देने के साथ औद्योगिक श्रमिकों तथा शहरी गरीबों को संगठित करने, अग्रणी संगठनों की स्थापना, छात्रों, मध्यम वर्ग के कर्मचारियों, बुद्धिजीवियों, महिलाओं, दलितों और धार्मिक अल्पसंख्यकों समेत समेकित संगठनों के ‘कुशल संयुक्त मोर्चों’ का निर्माण करने तथा कर्मियों को तकनीकी सामग्री तथा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदान करने के साथ ही सैन्य गतिविधियों में शामिल होने पर ज़ोर दिया।
- खुफिया रिपोर्ट से पता चलता है कि ‘शहरी नक्सलवाद’ का समर्थन करने वाले अग्रणी संगठन दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चंडीगढ़, रांची, हैदराबाद, विशाखापत्तनम, मदुरै, तिरुवनंतपुरम, नागपुर और पुणे समेत कई शहरों में सक्रिय हैं। इनमें वकील, लेखक, मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्त्ता शामिल हैं जिनकी समय-समय पर गिरफ्तारियाँ भी हुई हैं। हालाँकि सरकार या सरकारी एजेंसियों की तरफ से अर्बन नक्सल को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है।
- शहरी नक्सलवाद के मामले में शहर में रहने वाले शिक्षित व्यक्ति नक्सलियों को कानूनी और बौद्धिक समर्थन प्रदान करते हैं।
- शहरी नक्सली भारत के ‘अदृश्य दुश्मन’ हैं, उनमें से कुछ को या तो गिरफ्तार किया जा चुका है या नक्सली गतिविधियों तथा भारतीय राज्य के खिलाफ विद्रोह फैलाने के लिये पुलिस रडार पर रखा गया है।
- शहरों में नक्सलवाद के बढ़ने का सबसे पहला मामला केरल में दिखाई दिया था जब एक नक्सली वर्ग को पुलिस ने पकड़ा था। फिर यह बात निकलकर सामने आई कि अब नक्सली अपना नेटवर्क शहरों में फैला रहे हैं।
- विशेषज्ञों का मानना है कि नक्सलवाद के पीछे जो विचारधारा है उसको प्रोत्साहित करने वाले लोग शहरों में छिपे बैठे हैं और अपनी गतिविधियों को शहरों से ही अंजाम दे रहे हैं।
- शहरी नक्सलियों का मुख्य एजेंडा शहरों में नक्सलवाद का गुणगान करना और लोगों को नक्सली विचारधारा से जोड़ना है तथा विकास के किसी भी दावे को झुठलाना है।
- शहरी नक्सलवाद की एक अन्य परिभाषा के अंतर्गत यह एक ऐसी घटना है जिसे एक या अधिक या निम्नलिखित सभी विशेषताओं द्वारा चिह्नित किया किया जा सकता है:
- भारतीय अर्थव्यवस्था में बाधा डालकर किसी भी रूप में विकास कार्यों को रोकने का प्रयास (उदाहरण के लिये बांध निर्माण, परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं आदि के खिलाफ पीआईएल दायर करके)।
- देश की शिक्षा व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ (उदाहरण के लिये आरटीई, पाठ्य पुस्तकों में मार्क्सवादी प्रचार आदि)।
- देश की कानूनी और न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना
- देश की सुरक्षा व्यवस्था में हस्तक्षेप
- देश में हिंदू संस्कृति पर हमला (उदाहरण के लिये हिंदू त्योहारों, रीति-रिवाजों आदि पर हमला)।
- पुणे पुलिस की कार्रवाई से स्पष्ट है कि शहरी समाज में नक्सलियों के प्रति हमदर्दी रखने के साथ ही उनकी हरसंभव तरीके से मदद करने वाले तत्व सक्रिय हैं। इसका प्रमाण तब मिला था, जब दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईंबाबा को नक्सलियों की मदद के अपराध में सज़ा सुनाई गई थी। नि:संदेह ऐसे तत्त्वों के खिलाफ आरोप साबित करना कठिन है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि शहरी समाज में नक्सलियों के दबे-छिपे मददगार मौजूद नहीं हैं।
- गृह मंत्रालय ने सुझाव दिया है कि वामपंथी चरमपंथी चुनौतियों से निपटने की रणनीति में ‘शहरी नक्सलवाद’ से निपटने की योजना शामिल होनी चाहिये। राज्य सरकारों को माओवादी फ्रंट संगठनों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करनी होगी। शहरों में बढ़ते नक्सली गतिविधियों का मुकाबला करने के लिये एक अलग बजट का प्रावधान किया जाना चाहिये। देश का युवा जैसे-जैसे जागरुक हो रहा है वह देश के विकास में भागीदार बनना चाहता है। नक्सलवाद की विचारधारा से उसका मोहभंग हो रहा है।
आज युवाओं का वह तबका जो नक्सलवाद की चपेट में आ गया है, को समझाने की जरुरत है, उसे संवैधानिक व्यवस्था से जोड़ने की ज़रूरत है और इस काम को करने के लिये समाज को आगे आना होगा।