प्रश्न – भारत का डिजिटल इंडिया में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। – 9 September 2021
उत्तर – भारत में डिजिटल इंडिया
जब प्रत्येक क्षेत्र COVID-19 के कारण संकट में फंस गया है, भारत सरकार का डिजिटल इंडिया विजन वर्तमान परिदृश्य में स्थिति को हल करने का एक साधन प्रतीत होता है। वर्तमान में तमाम कारोबारी गतिविधियां भी ठप हो गई हैं, और सभी अर्थव्यवस्था और जीडीपी की बात कर रहें है, इससे शिक्षा क्षेत्र भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
COVID-19 वैश्विक महामारी ने शिक्षा के पारंपरिक संरचना (स्कूल, कॉलेज, कक्षा मॉडल) को गंभीर रूप से खतरे में डाल दिया है, और इस स्थिति में ऑनलाइन शिक्षा एक नए विकल्प के रूप में सामने आई है। निस्संदेह डिजिटल पहलों ने महामारी से पहले भी शिक्षा प्रणाली को अधिक समावेशी बनाने में मदद की है, लेकिन ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली में कई चुनौतियां हैं और इसमें सुधार की जरूरत है।
शिक्षा क्षेत्र में डिजिटल पहल (डिजिटल इंडिया) के सकारात्मक पहलू:
- लचीलापन: विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रमों के साथ कौशल और तकनीकी ज्ञान प्राप्त करने के लिए डिजिटल माध्यम एक महान उपकरण है। उदाहरण के लिए, ई-पाठशाला शिक्षण के लिए ई-सामग्री प्रदान करती है। SWAYAM पोर्टल ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के लिए एक एकीकृत मंच प्रदान करता है। साथ ही यह एक बहु-विषयक दृष्टिकोण विकसित करने में भी मदद करता है। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा संस्थान विभिन्न स्तरों और विषयों के कार्यक्रमों के ऑनलाइन संस्करण पेश करने के लिए आगे आ रहे हैं।
- लागत प्रभावी: डिजिटल पहल शिक्षा के पारंपरिक मॉडल की तुलना में कम निवेश के साथ भी शिक्षा के उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम है। ऑनलाइन माध्यम में शिक्षण सामग्री और शैक्षिक शुल्क काफी कम खर्चीला है।
- विशिष्टता: डिजिटल पहल देश के ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में एक साथ शिक्षा को सुलभ बना सकती है। साथ ही ऑनलाइन शिक्षण छात्रों को ऐसे वातावरण में काम करने की अनुमति देता है जो उन्हें उपयुक्त लगता है।
वस्तुतः शिक्षा अपने मूल में समाजीकरण की प्रक्रिया है। जब-जब समाज का स्वरूप बदला, शिक्षा के स्वरूप में भी परिवर्तन की चर्चा होने लगी। आज कोरोना संकट के दौर में नीति निर्माताओं द्वारा ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से शिक्षा का स्वरूप बदलने का प्रस्ताव जोरदार तरीके से प्रस्तावित किया जा रहा है।
ऐसे में यह देखना जरूरी है कि समाज की संरचना और उद्देश्य में ऐसा क्या मौलिक परिवर्तन आया है, जिसे अपरिहार्य बताया जा रहा है। स्वतंत्रता के बाद क्या स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर आधारित सार्वभौमिक शिक्षा का मॉडल किसी काम का नहीं रह गया है?
शिक्षा क्षेत्र में डिजिटल पहल के कारण नुकसान:
- डिजिटल डिवाइड: ई-लर्निंग, मध्यम और उच्च वर्ग के छात्रों के लिए एक विशेषाधिकार की तरह है, लेकिन यह निम्न-मध्यम वर्ग के छात्रों और गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) रहने वाले लोगों के लिए एक दिवास्वप्न की तरह है। गरीब छात्र, जिनके पास ई-संसाधनों (कंप्यूटर, लैपटॉप, इंटरनेट कनेक्टिविटी) तक पहुंच नहीं है, वे घर से कक्षाएं नहीं ले पाएंगे। इसलिए, डिजिटल पहल, शिक्षा में डिजिटल विभाजन की खाई को और चौड़ा करती है।
- एक सामाजिक संस्था के रूप में पारंपरिक कक्षाएँ: स्कूल और कॉलेज जैसी संस्थाएँ सामाजिक संस्थाएँ हैं, जिनमें छात्र न केवल अकादमिक ज्ञान अर्जित करते हैं, बल्कि कई सामाजिक कौशल भी सीखते हैं जो व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए अति आवश्यक हैं।
- व्यावसायीकृत शिक्षा : ई-लर्निंग के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, हमें कॉर्पोरेट घरानों, प्रौद्योगिकी फर्मों और शैक्षणिक संस्थानों के साथ मिलकर काम करना होगा जो शिक्षा के व्यावसायीकरण को बढ़ा सकते हैं।
भविष्य की शिक्षा में प्रौद्योगिकी का हस्तक्षेप बढ़ेगा और कई अज्ञात और अनदेखे विषय अध्ययन के क्षेत्र में आएंगे। इसके बावजूद, हमें पारंपरिक और प्रौद्योगिकी आधारित शिक्षा प्रणाली के बीच संतुलन बनाकर अपनी शिक्षा प्रणाली को लगातार परिष्कृत करना होगा। वर्तमान शताब्दी इतिहास के सबसे अनिश्चित और चुनौतीपूर्ण परिवर्तनों में से एक है। इसलिए हमें भविष्य की अज्ञात चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए खुद को तैयार करना होगा। आने वाले समय में केवल एक विषय का ज्ञान हमें कोई लाभ नहीं दे सकता, इसलिए हमें हर विषय के ज्ञान को शिक्षा का अभिन्न अंग बनाना होगा। सरकार पूरी कोशिश कर रही है कि वह फ्यूचरिस्टिक विजन के मुताबिक इस दिशा में सुधार और बदलाव करती रहेगी। ऐसा करके ही हम शिक्षा का भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं और समय के अनुसार भविष्य की शिक्षा बना सकते हैं।