प्रश्न – प्रस्तावना संविधान में निहित समग्र उद्देश्यों और भारतीय संविधान निर्माताओं की अभिव्यक्ति है। इसकी व्याख्या सहित, प्रस्तावना के संशोधनीयता पर प्रकाश डालिए। – 7 September 2021
उत्तर –
प्रस्तावना , भारतीय संविधान का एक प्रारंभिक दस्तावेज है, जो अधिकार के स्रोतों, भारतीय राज्य की प्रकृति, संविधान के उद्देश्यों और संविधान को अपनाने की तारीख को व्यक्त करता है। यह मूल दर्शन और मौलिक मूल्यों को प्रदर्शित करता है, और इसमें संविधान सभा की आदर्शवादी दृष्टि शामिल है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा तैयार किए गए, और संविधान सभा द्वारा स्वीकृत उद्देश्य प्रस्ताव पर आधारित है। प्रख्यात न्यायविद और संवैधानिक विशेषज्ञ एन एन पालकीवाला ने संविधान की प्रस्तावना को “संविधान का पहचान पत्र” के रूप में सम्बोधित किया है। संविधान सभा की महान और आदर्श सोच प्रस्तावना में दृष्टिगत है। यह संविधान निर्माताओं की आकांक्षाओं को दर्शाता है।
प्रस्तावना संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और यह दर्शाता है कि इसके निर्माताओं का मुख्य उद्देश्य एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना करना था। इसका उद्देश्य न्याय, समानता और स्वतंत्रता पर आधारित न्यायसंगत सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करना था।
प्रस्तावना संविधान के कई प्रावधानों में निहित सामान्य उद्देश्यों को व्यक्त करती है जैसे:
- न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक) – मौलिक अधिकारों और नीति के निदेशक सिद्धांतों में असमानताओं को दूर करने, भेदभाव को समाप्त करने और सभी के लिए समान अधिकार हासिल करने के उद्देश्य से विभिन्न प्रावधान शामिल हैं।
- स्वतंत्रता (विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और पूजा की) – अनुच्छेद 19 के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई है और अनुच्छेद 25-28 अल्पसंख्यकों सहित सभी को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है।
- समानता (गरिमा और अवसर की समानता ) – यह नागरिक, राजनीतिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देती है। जैसे – अनुच्छेद 14-18 में समाज के किसी भी वर्ग के लिए विशेष विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति और बिना किसी भेदभाव के सभी को पर्याप्त अवसर प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद 39 आजीविका के पर्याप्त साधन और समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार सुनिश्चित करता है। अनुच्छेद 325 और 326 सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के साथ-साथ बिना किसी भेदभाव के चुनाव में भाग लेने का अधिकार प्रदान करते हैं।
- बंधुत्व (सभी व्यक्तियों की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता): एकल नागरिकता के तंत्र के माध्यम से बंधुत्व की भावना को बढ़ावा देता है। भारत के सभी लोगों के बीच सद्भाव और बंधुत्व की भावना विकसित करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है।
चूंकि प्रस्तावना हमारे संविधान की कुंजी है, इसलिए इसमें संशोधन को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं। इस प्रश्न को केशवानंद भारती मामले (1973) में हल किया गया था, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है और इसे केवल अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया जा सकता है, जो मूल संरचना के सिद्धांत के अधीन है।
प्रस्तावना में संशोधन:
1976 में, 42वें संविधान संशोधन अधिनियम (अब तक केवल एक बार) द्वारा प्रस्तावना में संशोधन किया गया था जिसमें तीन नए शब्द- समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता जोड़े गए थे। अदालत ने इस संशोधन को बरकरार रखा।
इससे पहले, बेरुबारी यूनियन केस 1960 में, कोर्ट ने कहा था कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है और इसलिए, अनुच्छेद 368 के तहत मूल संरचना में संशोधन नहीं किया जा सकता है।
इस प्रकार स्वतंत्र भारत के संविधान की प्रस्तावना सुंदर शब्दों से बनी है। इसमें भारत के संविधान के मूल आदर्श, उद्देश्य और दार्शनिक अवधारणा शामिल है। वे संवैधानिक प्रावधानों को तर्कसंगतता या निष्पक्षता प्रदान करते हैं।