प्रश्न – नीतिशास्त्र, निम्नलिखित संप्रत्ययों जैसे- नैतिकता, धर्म, कानून एवं संस्कृतिजन्य मानकों के अनिवार्य: अनुपालन से छूट प्रदान करता है| – 9 May
उत्तर –
- नीतिशास्त्र की ‘नैतिकता’ से भिन्नता
नैतिकता व्यक्ति विषयक है परन्तु नीतिशास्त्र समाज विषयक। नैतिकता का मापदंड व्यक्ति स्वयं निर्धारित करता है। अर्थात् नैतिकता में वैयक्तिक रुचि उत्पन्न हो जाती है। एक व्यक्ति विशेष के लिए कोई कर्म, विचार या विश्वास ‘नैतिक’ हो सकता है तो क्या हुआ अगर अन्य के लिए यही कर्म या विचार अनैतिक हैं। दूसरे शब्दों में, एक व्यक्ति स्वयं को ‘नैतिक’ मान सकता है और इसके लिए इसे दूसरों के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती। दूसरी ओर नीतिशास्त्र/ आचारशास्त्र का संबंध समाज से है। एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में नीतिशास्त्र मनुष्य के वैयक्तिक तथा सामाजिक कल्याण के लिए उसके आचरण का नियमन, नियंत्रण, मूल्यांकन तथा मार्गदर्शन करता है। दूसरे शब्दों में, यह लोगों को आत्मसात् के लिए प्रेरित करता है। ऐसे में नीतिशास्त्र को सिर्फ ‘व्यक्ति विशेष’ तक ही सीमित नहीं किया जा सकता।
- नीतिशास्त्र की धर्म से भिन्नता
नीतिशास्त्र का संबंध प्रत्येक से है परन्तु धर्म के बारे मे ऐसा नहीं कहा जा सकता । एक व्यक्ति आदर्श और व्यवहार दोनों दृष्टियों से नीतिपरक हो सकता है,परन्तु यह जरूरी नहीं कि धार्मिक भी हो। दूसरे शब्दों में, यदि कोई व्यक्ति अथवा समुदाय धर्मपरायणहै तो भी वह नैतिक मूल्यों, आदर्शों तथा नियमों के अनुरूप आचरण कर सकता है। सामान्य व्यक्ति अपने व्यावहारिक जीवन में किसी कर्म को उचित अनुचित कहता है तो उसका यह नैतिक निर्णय अनिवार्यतः उसके धार्मिक विश्वास से शासित नहीं होता है। दूसरी तरफ उच्च नैतिक आदर्श अधिकांश धर्मों के अनिवार्य अंग है परन्तु ये धर्म सभी समस्याओं का समाधान सुनिश्चित नहीं कर पाते। वस्तुतः धर्म का केंद्र बिन्दु ईश्वर है परन्तु नीतिशास्त्र का केन्द्र बिंदु व्यक्ति और अनिवार्य अंग के रूप में नीतिशास्त्र को धर्म का आधार बनाया जा सकता है, परन्तु धर्म को नीतिशास्त्रका आधार नहीं बनाया जा सकता क्योंकि एक धर्म द्वारा स्थापित नैतिक आदर्श को अन्य धर्म के लोग शायद ही स्वीकार करें।
- नीतिशास्त्र के लिए कानून का अनुसरण अनिवार्य नहीं
कानून और नीतिशास्त्र दोनो एक नहीं है, जो नैतिक आदर्श के अनुकूल हो जरूरी नहीं वह कानूनी दृष्टि से भी वैध हो। पुन: किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करना कानूनन अपराध है परन्तु नीतिशास्त्र के दृष्टिकोण से ऐसा सोचना मात्र अपराध की कोटि में माना जाएगा (कांट)। वस्तुत: कानून एक वैधानिक संहिता है अथवा “यह करे, यह न करे’ का एक तंत्र है जिसके द्वारा मानवीय व्यवहार को नियंत्रित एवं निर्देशित किया जाता है। इसके अंतर्गत उच्च नैतिक मानकों को समायोजित करने का प्रयास किया जाता है परन्तु वह सब कुछ जो नैतिक आदर्श के अनुकूल हो, अनिवार्य रूप से कानून का अंग नहीं भी हो सकता। दूसरे शब्दों में, हमारे अधिकांश कानूनी धाराओं की सहमति नैतिक मान्यताओं के साथ होती है। परन्तु बदलते सामाजिक आर्थिक संदर्भ से उपजी नयी-नयी समस्याओं के समक्ष ऐसे कानून भी कमतर साबित होते हैं। वस्तुत: नैतिक आदर्श, मानक कानून से पूर्व है जबकि कानून नैतिकता का अनुमोदन करता है। कानून का औचित्य नैतिक मानकों से ही सिद्ध होता है। इसलिए, कानून की नैतिकता और इसके मूल तत्व का मानव से सम्बंधित रहस्यवाद भी, सार्वजनिक अभिव्यक्ति हैं और किसी भी तरह से नैतिक मानकों के स्थान पर उपयोग नहीं किए जा सकते हैं।।
- नीतिशास्त्र संस्कृतिजन्य मानकों का अनिवार्यतः अनुसरण नहीं करता
प्रत्येक संस्कृति की अपनी मान्यताएं हैं जो विशिष्ट रीति-रिवाजों एवं प्रथाओं का आधार हैं। यह आवश्यक नहीं कि सभी संस्कृतियां समान रूप से उच्च नैतिक आदर्शों का अनुमोदन करें। इसका स्पष्ट उदाहरण है अमेरिकी एवं भारतीय संस्कृति। भले ही दोनों संस्कतियों में प्रथा एवं जाति प्रथा को अपनाया गया परन्तु नैतिक आदर्शों एवं मान्यताओं को ही अपना कर संस्कृतियों में इन प्रथाओं का औचित्य सिद्ध नहीं किया जा सका।