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प्रश्न – नक्सलवाद भारत के लिए गंभीर समस्या है। इसके समाधान में आने वाली चुनौतियों का उल्लेख करते हुए, सरकार के द्वारा किये जा रहे प्रयासों का मूल्यांकन कीजिये।
उत्तर –
यह निश्चित रूप से आज एक विचारणीय प्रश्न है कि, नक्सलवाद मूल रूप से एक कानूनी समस्या है या असमानता से उत्पन्न विवाद। विचारकों का एक वर्ग नक्सलवाद को आतंकवाद जैसी गतिविधियों से जोड़कर देश की आंतरिक सुरक्षा को सबसे बड़ी चुनौती मानता है, जबकि दूसरा वर्ग इसे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक असमानताओं और उत्पीड़न-शोषण की पीड़ा से उत्पन्न एक सहज विद्रोह मानता है।
नक्सलवाद की वैचारिक पृष्ठभूमि:
- भारत में नक्सली हिंसा का प्रारम्भ वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग ज़िले के नक्सलबाड़ी गाँव से हुआ था । नक्सलबाड़ी गाँव के नाम पर ही उग्रपंथी आंदोलन को नक्सलवाद कहा गया।
- ज़मींदारों द्वारा छोटे किसानों पर किये जा रहे के उत्पीड़न पर अंकुश लगाने के लिये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी(CPI) के कुछ नेता सामने आए। इन नेताओं में चारू मजूमदार, कानू सान्याल और कन्हाई चटर्जी का नाम प्रमुख है।
- कुछ कम्युनिस्टों द्वारा गुरिल्ला युद्ध के ज़रिये राज्य को अस्थिर करने के लिये हिंसा का इस्तेमाल किया जाता है। इसे ही ‘नक्सलवाद’ कहा जाता है। भारत में ज़्यादातर नक्सलवाद, माओवादी विचारधाराओं पर आधारित है। इसके ज़रिये वे मौजूदा शासन व्यवस्था को उखाड़ फेंकना चाहते हैं और लगातार युद्ध के ज़रिये ‘जनताना सरकार’ लाना चाहते हैं।
- भारत में जहाँ वामपंथी आंदोलन पूर्व सोवियत संघ से प्रभावित था वहीँ आज का माओवाद चीन से प्रभावित है। ये मौजूदा माओवाद हिंसा और ताकत के बल पर समानांतर सरकार बनाने का पक्षधर है। इसके अलावा अपने उद्देश्य के लिये ये किसी भी प्रकार की हिंसा को उचित मानते हैं।
इसके साथ ही इन दिनों शहरी नक्सलवादी गतिविधियाँ भी देखने को मिल रही हैं।
शहरी नक्सलवाद:
विगत कुछ वर्षों में शहरी नक्सलवाद या ‘अर्बन नक्सलिज़्म’ शब्द तेजी से सामने आया है। शहरी नक्सलवाद से मतलब, उन शहरी आबादी में रहने वाले लोगों से हैं जो प्रत्यक्ष तौर पर तो नक्सलवादी नहीं है, लेकिन वो नक्सलवादी संगठनों के प्रति और उनकी गतिविधियों के प्रति सहानुभूति रखते हैं।
नक्सलवाद की उत्पत्ति के कारण:
- नक्सलियों का कहना है कि वे उन आदिवासियों और गरीबों के लिये लड़ रहे हैं, जिनकी सरकार ने दशकों से अनदेखी की है। वे ज़मीन के अधिकार एवं संसाधनों के वितरण के संघर्ष में स्थानीय सरोकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- माओवाद प्रभावित अधिकतर इलाके आदिवासी बहुल हैं और यहाँ जीवनयापन की मूलभूत सुविधाएँ तक उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन इन इलाकों की प्राकृतिक संपदा के दोहन में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों ने कोई कमी नहीं छोड़ी है। यहाँ न सड़कें हैं, न पीने के लिये पानी की व्यवस्था, न शिक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ और न ही रोज़गार के अवसर।
- नक्सलवाद के उभार के आर्थिक कारण भी रहे हैं। नक्सली, सरकार के विकास कार्यों के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करते हैं। वे आदिवासी क्षेत्रों का विकास नहीं होने देते और उन्हें सरकार के खिलाफ भड़काते हैं। वे लोगों से वसूली करते हैं एवं समांतर अदालतें लगाते हैं।
- प्रशासन तक पहुँच न हो पाने के कारण स्थानीय लोग नक्सलियों के अत्याचार का शिकार होते हैं।
- अशिक्षा और विकास कार्यों की उपेक्षा ने स्थानीय लोगों एवं नक्सलियों के बीच गठबंधन को मज़बूत बनाया है।
- सामाजिक विषमता ही वर्ग संघर्ष की जननी है। आज़ादी के बाद भी इस विषमता में कोई कमी नहीं आयी। नक्सलियों के लिये यह एक बड़ा मानसिक हथियार है।
- शासन की जनहित के लिये बनने वाली योजनाओं के निर्माण एवं उनके क्रियान्वयन में गंभीरता, निष्ठा व पारदर्शिता का अभाव रहता है जिससे वंचितों को भड़काने और नक्सलियों की नई पौध तैयार करने के लिये इन माओवादियों को अच्छा बहाना मिल जाता है।
सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास:
- सामान्यत: कानून-व्यवस्था राज्य सूची का विषय होता है अर्थात राज्य में कानून और व्यवस्था बनाए रखने का काम संबंधित राज्य का होता है। लेकिन नक्सलवाद की विकटता को देखते हुए वर्ष 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इसको राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा के लिये सबसे बड़ी चुनौती बताया। उसके बाद गृह मंत्रालय में नक्सलवाद की समस्या से निपटने के लिये एक अलग प्रभाग बनाया गया।
- सरकार वामपंथी चरमपंथ से प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे, कौशल विकास, शिक्षा, ऊर्जा और डिजिटल कनेक्टिविटी के विस्तार पर काम कर रही है।
- सरकार वामपंथी अतिवाद से प्रभावित क्षेत्रों में सड़कें बनाने की योजना पर तेज़ी से काम कर रही है और वर्ष 2022 तक 48,877 किमी. सड़कें बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
- वर्ष 2013 में आजीविका योजना के तहत ‘रोशनी’ नामक विशेष पहल की शुरूआत की गई थी ताकि सर्वाधिक नक्सल प्रभावित ज़िलों में युवाओं को रोज़गार के लिये प्रशिक्षित किया जा सके।
- वर्ष 2017 में नक्सल समस्या से निपटने के लिये केंद्र सरकर ने आठ सूत्रीय ‘समाधान’नाम से एक कार्ययोजना की शुरुआत की है।
- सर्वाधिक नक्सल प्रभावित 30 ज़िलों में ‘जवाहर नवोदय विद्यालय’ और ‘केंद्रीय विद्यालय’ संचालित किये जा रहे हैं।
- हिंसा का रास्ता छोड़कर समर्पण करने वाले नक्सलियों के लिये सरकार पुनर्वास की भी व्यवस्था करती है।
एक तरफ जहाँ इस समस्या की वजह आर्थिक और सामाजिक विषमता समझी जाती रही है, वहीं दूसरी ओर इसे अब एक राजनीतिक समस्या भी समझा जाने लगा है। यही कारण है कि जानकारों की नज़रों में नक्सलवाद राजनीतिक दलों का एक ‘चुनावी तवा’ है जिस पर मौका मिलते ही रोटी सेंकने की कोशिश की जाती है।
ऐसा इसलिये भी कहा जाता है क्योंकि, हमारी सरकारें लगातार संविधान की पाँचवीं अनुसूची को तरजीह देने से कतराती रही हैं। गौरतलब है कि इस अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण से जुड़े मामले आते हैं। पाँचवीं अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्रों में Tribes Advisory Council की स्थापना की बात की गई। दरअसल, इन क्षेत्रों में Advisory Council एक तरह की पंचायत है जो आदिवासियों को अपने क्षेत्रों में प्रशासन करने का अधिकार देती है। इस कौंसिल में अधिकतम 20 सदस्य होते हैं जिनके तीन-चौथाई सदस्य वे होते हैं जो संबंधित राज्य की विधान सभा में अनुसूचित क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
यह सार्वभौमिक सत्य है कि हिंसा से प्राप्त की हुई व्यवस्था ज़्यादा दिन तक चल नहीं पाती और अंततः टूट जाती है। दूसरी ओर सरकार को भी कानून-व्यवस्था की समस्या से ऊपर उठकर इनकी मूलभूत समस्याओं को दूर करने के प्रयास करने चाहिये।