प्रश्न – डीएनए प्रोफाइल का प्रयोग आपराधिक जाँच के मामलों में सुरक्षा एजेंसियों का मार्गदर्शन करने के लिये किया जाएगा, इस सन्दर्भ में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन संबंधी संसदीय स्थायी समिति द्वारा ,डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2019 पर प्रस्तुत रिपोर्ट पर चर्चा करें।

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प्रश्न – डीएनए प्रोफाइल का प्रयोग आपराधिक जाँच के मामलों में सुरक्षा एजेंसियों का मार्गदर्शन करने के लिये किया जाएगा, इस सन्दर्भ में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन संबंधी संसदीय स्थायी समिति द्वारा ,डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2019 पर प्रस्तुत रिपोर्ट पर चर्चा करें। – 10 April

उत्तर –

  • हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन से संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने डीएनए (DNA) प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2019 पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इस विधेयक का उद्देश्य लोगों की पहचान स्थापित करने के लिये DNA की जानकारी के उपयोग/प्रयोग को विनियमित करना है। डीएनए प्रोफाइल का प्रयोग आपराधिक जाँच के मामलों में सुरक्षा एजेंसियों का मार्गदर्शन करने के लिये किया जाएगा।
  • इस समिति ने आपराधिक न्याय प्रणाली में अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता को रेखांकित किया है परंतु, इसके साथ ही समिति ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस प्रक्रिया में संवैधानिक अधिकारों और विशेषकर निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिये।
  • यद्यपि डीएनए प्रौद्योगिकी अपराधों को सुलझाने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सहायता कर सकती है, परंतु सरकार को डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2019 से जुड़ी चिंताओं का भीहलनिकलना चाहिये।

डीएनए प्रौद्योगिकी विनियमन विधेयक से सम्बद्ध महत्वपूर्ण विषय :

निजता के अधिकार का उल्लंघन: इस विधेयक की आलोचना करते हुए तर्क दिया गया है कि यह मानवधिकारों का उल्लंघन करता है क्योंकि, यह विधेयक व्यक्ति की गोपनीयता से भी समझौता कर सकता है।

  1. साथ ही इस विधेयक के अंतर्गत डेटाबैंक में संग्रहीत डीएनए प्रोफाइल की गोपनीयता को सुरक्षित रखने की योजना पर भी चिंता और सवाल उठाए गए हैं।
  2. डीएनए प्रौद्योगिकी विनियमन विधेयक उन विधेयकों की लंबी सूची में सम्मिलित है, जो देश में एक मज़बूत और प्रभावकारी डेटा सुरक्षा कानून की अनुपस्थिति में प्रस्तुत किये जा रहे हैं।

जटिल आपराधिक जाँच: आपराधिक जाँच के दौरान प्रभावी रूप से डीएनए प्रौद्योगिकी के प्रयोग के लिये अपराध से संबंधित घटनास्थल की उचित जाँच, प्रशिक्षित और विश्वसनीय पुलिसिंग, सटीक विश्लेषण तथा अदालत में साक्ष्यों का उचित उपयोग आदि की आवश्यकता होगी।

इन आवश्यकताओं को पूरा किये बिना एक DNA डेटाबेस आपराधिक न्याय प्रणाली में समस्याओं को हल करने के बजाय और अधिक बढ़ा देगा।उदाहरण के लिये गलत मेल अथवा व्याख्या या साक्ष्य से छेड़-छाड़ के कारण न्याय के लिये संकट उत्पन्न हो सकता है।

जैविक निगरानी: यह संभव है कि किसी अपराध स्थल से प्राप्त सभी डीएनए साक्ष्य अपराध से जुड़े लोगों के न हों।

  1. वर्तमान में देश में सक्रिय प्रयोगशालाएँ डीएनए प्रोफाइलिंग की संपूर्ण आवश्यकता का मात्र 2-3% ही पूरा कर सकती हैं।
  2. गौरतलब है कि राजीव सिंह बनाम बिहार राज्य (2011) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुचित तरीके से विश्लेषित डीएनए साक्ष्य को अस्वीकार कर दिया था।

वंचित वर्गों पर प्रभाव: भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में लंबे समय से व्याप्त प्रमुख त्रुटियों में से एक यह है कि इसमें पीड़ित और अभियुक्त (विशेष रूप से समाज के हाशिये पर रह रहे वर्गों के लिये) दोनों को सहायता प्रदान करने हेतु कानूनी सहायता प्रणाली का हमेशा ही अभाव रहा है।

  1. कई अध्ययनों से पता चलता है कि आपराधिक मामलों के आरोपी, अधिकांश लोग अपने अधिकारों के बारे सजग नहीं हैं।
  2. यह चिंता तब और भी बढ़ सकती है जब अपराध को सिद्ध करने के लिये डीएनए प्रोफाइलिंग जैसी एक परिष्कृत तकनीक का उपयोग किया जाएगा।

जाति आधारित प्रोफाइल का दुरुपयोग: स्थायी समिति ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि DNA प्रोफाइल किसी व्यक्ति के बारे में अत्यंत संवेदनशील जानकारी को उजागर कर सकती है और इसलिये इसका उपयोग जाति/समुदाय आधारित प्रोफाइलिंग के लिये किया जा सकता है।

आगे के कदम :

  • गोपनीयता को प्राथमिकता देना: नागरिकों की गोपनीयता के संरक्षण का उत्तरदायित्त्व सरकार को दिया गया है। DNA के उपयोग के दौरान गोपनीयता संरक्षण का सबसे आसान विकल्प यह होगा कि, व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को पहले हीप्रवर्तित कर दिया जाए।
  1. यह लोगों को उनके अधिकारों के संरक्षण के अभाव में भी कुछ सीमा तक राहत प्रदान करेगा।
  2. यह विशेष रूप से उच्चतम न्यायालय के निजता के अधिकार से जुड़े फैसले के बाद और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है।
  • स्वतंत्र नियामक की स्थापना: विधेयक में प्रस्तावित DNA नियामक बोर्ड अत्यधिक शक्तिशाली होने के बाद भी इसमें पर्याप्त पारदर्शिता या जवाबदेही की कमी है।इसलिये प्रयोगशाला गुणवत्ता आश्वासन और अपराध स्थल परीक्षण दोनों की निगरानी सुनिश्चित करने के लिये एक स्वतंत्र फारेंसिक विज्ञान नियामक की नियुक्ति पर विचार किया जाना चाहिये।
  • पारदर्शिता सुनिश्चित करना: विचाराधीन कैदियों, अपराधियों, लापता तथा मृतक व्यक्तियों के डीएनए प्रोफाइलों के अनुक्रमण के लिये एक नई प्रणाली को अपनाने के साथ ही डीएनए प्रोफाइलिंग तकनीक में पारदर्शिता बढ़ाने पर विचार करना और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
  • मानव और अवसंरचना आवश्यकताओं को संबोधित करना: इस तकनीक के प्रभावी और न्यायपूर्ण उपयोग के लिये आपराधिक न्यायिक प्रणाली से जुड़े अधिकारियों जैसे- पुलिस, वकील, मजिस्ट्रेट आदि को प्रशिक्षित तथा जागरूक करने की आवश्यकता होगी।इसके अतिरिक्त प्रयोगशालाओं की संख्या के साथ जुड़े बुनियादी ढाँचे के मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है।

मालक सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य (1981) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि, संदिग्धों की व्यापक निगरानी/सर्विलांस के बिनासंगठित अपराध से सफलतापूर्वकलड़ पाना कठिन है,परंतु इस प्रकार का सर्विलांस व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं कर सकता।इस संदर्भ में एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना की महती आवश्यकता है जिससे इस तरह के प्रोफाइलिंग को मानवाधिकारों और संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप प्रभावी रूप से लागू किया जा सके।

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