प्रश्न – जैव-आतंकवाद से क्या आशय है? यह किस प्रकार मानव अस्तित्व पर एक गंभीर संकट है? उदाहरण सहित विश्लेषण कीजिये।

प्रश्न – जैव-आतंकवाद से क्या आशय है? यह किस प्रकार मानव अस्तित्व पर एक गंभीर संकट है? उदाहरण सहित विश्लेषण कीजिये। – 15 May 2021

उत्तर:

  • मानव इतिहास के अध्ययन से हमें यह पता चलता है कि इस धरती पर युद्ध का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हुआ। हम वैश्विक शांति की जितनी अधिक कामना करते हैं, उतना ही अधिक युद्धों में उलझते जा रहे हैं। यह युद्ध चाहे पड़ोसी देशों के बीच सीमाओं को लेकर हुए हों या संसाधनों के बँटवारे को लेकर हुए हों या फिर आतंकवाद से उपजी परिस्थितियों के कारण हुए हों, इन सबके बीच दिन-प्रतिदिन मानव एवं मानवता मृतप्राय होती जा रही है। युद्ध की सतत आशंका के कारण पुरे विश्व में आधुनिक हथियारों के निर्माण की होड़ बढ़ती जा रही है। विगत सौ वर्षों में हथियारों के निर्माण में अंधाधुंध वृद्धि देखी जा रही है। आधुनिक हथियारों के निर्माण में वृद्धि के साथ ही युद्ध के पारंपरिक तौर-तरीकों में भी बड़ा बदलाव देखा जा रहा है। इनमें एक नया तरीका जैविक हथियारों का भी है।
  • कोरोना वायरस संक्रमण के तौर तरीकों को देखते हुए जैविक हथियार व जैव आतंक चर्चा के केंद्र में आ गया है। Covid-19 नामक संहारक बीमारी को पैदा करने वाले कोरोना वायरस के निर्माण और उसे पूरे विश्व में फैलाने को लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है।

जैव आतंक

  • वर्तमान में आतंक के एक नए हथियार के रूप में उच्च तकनीकी आधारित जैव आतंक का प्रयोग किया जाने लगा है। जैव आतंक का प्रयोग न केवल आतंकवादी समूह कर रहे हैं, बल्कि शक्ति संपन्न राष्ट्र भी प्रत्यक्ष रूप से युद्ध में भाग न लेकर परोक्ष रूप से जैव आतंकवाद का सहारा ले रहे हैं।
  • आधुनिक काल में जैव आतंकवाद को ऐसी क्रूर गतिविधि के रूप में चिन्हित किया जा सकता है जिसके अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विषाणुओं, जीवाणुओं तथा विषैले तत्वों को मानव द्वारा ही प्राकृतिक अथवा परिवर्धित रूप में विकसित कर अपने लक्ष्य संधान हेतु किसी राष्ट्र के विरूद्ध निर्दोष जन, पशुओं अथवा पौधों को गंभीर हानि पहुँचाने हेतु योजनाबद्ध रूप से मध्यस्थ साधन के रूप में दुरूपयोग किया जाता है।
  • वर्तमान समय में आत्मघाती जैव आतंकवाद की समस्या भी सामने आ रही है जिसमें आतंकवादी स्वयं को घातक रोगकारी संक्रमण से संक्रमित करने के पश्चात सामान्यजन के मध्य जा कर उन्हें भी संक्रमित कर देता है और पूरे क्षेत्र को विनाशक रोग से भर देता है।

जैव हथियारों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में मेसोपोटामिया के अस्सूर साम्राज्य के लोगों ने शत्रुओं के पानी पीने के कुओं में एक विषाक्त कवक डाल दिया था, जिससे व्यापक पैमाने पर शत्रुओं की मृत्यु हो गई थी।
  • यूरोपीय इतिहास में तुर्की तथा मंगोल साम्राज्यों द्वारा संक्रमित पशु शरीरों को शत्रु राज्य के जल स्रोतों में डलवा कर संक्रमित करने के कई उदाहरण मिलते हैं। प्लेग महामारी के रूप में बहुचर्चित ‘ब्लैक डेथ’ (Black Death) के फैलने का प्रमुख कारण तुर्की तथा मंगोल सैनिकों द्वारा रोग पीडि़त मृत पशु शरीरों को समीपवर्ती नगरों में फेंका जाना बताया जाता है।
  • आधुनिक युग में जैविक हथियारों का पहली बार प्रयोग जर्मन सैनिकों द्वारा प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) में एंथ्रेक्स तथा ग्लैंडर्स के जीवाणुओं द्वारा किया गया था।
  • जापान-चीन युद्ध (1937-1945) तथा द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) में शाही जापानी सेना की विशिष्ट शोध इकाई ने चीनी नागरिकों तथा सैनिकों पर जैविक हथियारों के प्रयोग किये जो बहुत प्रभावशाली नहीं सिद्ध हो पाए परंतु नवीन अनुमानों के अनुसार, लगभग 6,00,000 आम नागरिक प्लेग संक्रमित खाद्य पदार्थों के प्रयोग से प्लेग तथा हैजा बीमारी से पीड़ित हुए थे।

रोकथाम के लिये प्रयास

  • जैविक हथियार के निर्माण और प्रयोग पर रोक लगाने के लिये कई विश्व में कई सम्मेलन हुए। सबसे पहले वर्ष 1925 में जिनेवा प्रोटोकॉल के तहत कई देशों ने जैविक हथियारों के नियंत्रण के लिये बातचीत शुरू की।
  • वर्ष 1972 में बायोलॉजिकल वेपन कन्वेंशन (Biological weapon Convention) की स्थापना हुई और 26 मार्च 1975 को 22 देशों ने इसमें हस्ताक्षर किये। भारत वर्ष 1973 में बायोलॉजिकल वेपन कन्वेंशन (BWC) का सदस्य बना और आज 183 देश इसके सदस्य हैं।
  • भारत में जैव आतंकवाद की चुनौतियों से निपटने के लिये गृह मंत्रालय एक नोडल एजेंसी है इसके साथ ही रक्षा मंत्रालय, डीआरडीओ, पर्यावरण मंत्रालय इत्यादि भी सक्रिय रुप से जैव आतंकवाद पर कार्य कर रहे हैं।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने जैव आतंकवाद से निपटने हेतु एक दिशा-निर्देश तैयार किया है जिसमें सरकारी एजेंसियों के साथ-साथ निजी एजेंसियों की सहभागिता पर भी बल दिया गया है।

चुनौतियाँ

  • जैव-आतंकवाद आज के समय में सबसे बड़ा खतरा है और सशस्त्र बलों की चिकित्सा सेवाओं को इस समस्या से निपटने में सबसे आगे होना चाहिये। आज के संदर्भ में जैव आतंकवाद ‘संक्रामक रोग’ के रूप में फैल रहा है।
  • परमाणु, रासायनिक और जैविक हथियारों के कारण स्थिति निरंतर जटिल होती जा रही है जिससे नई चुनौतियाँ पैदा हो रही हैं।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि जैव आतंकवाद की रोकथाम की क्षमता केवल पशु चिकित्सकों में ही है। विश्व स्तर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कमीशन फॉर जुनोसिस की स्थापना की है। इसके तहत जुनोसिस डिज़ीज कंट्रोल बोर्ड एवं कंट्रोल ऑफ वेक्टर बॉर्न डिज़ीज सेंटर कार्यरत हैं। भारत में इसे लेकर गंभीरता काफी कम है, जबकि आए दिन यहाँ आतंकवादी हमले होते रहते हैं।

चूँकि जैव आतंकवाद एक वैश्विक समस्या है अतः सभी हितधारकों को मिलजुल कर ना केवल इस दिशा में सुरक्षा उपायों को अपनाए जाने की आवश्यकता है बल्कि भविष्य में ऐसी आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिये शोध की भी आवश्यकता होगी।जैविक आपदा प्रबंधन से संबंधित राष्ट्रीय दिशा-निर्देश जारी किये जाने की जरूरत है। आतंकवादियों द्वारा जैविक हथियार इस्तेमाल कर सकने की आशंका के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है।

जैविक आपदाओं से निपटने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच उचित सहयोग होना चाहिये, लेकिन अगर इसका प्रभावी ढंग से सामना करना है तो जिलों तथा स्थानीय निकायों के बीच समन्वय और भी आवश्यक है।

Download our APP – 

Go to Home Page – 

Buy Study Material – 

Share with Your Friends

Join Our Whatsapp Group For Daily, Weekly, Monthly Current Affairs Compilations

Related Articles

Youth Destination Facilities

Enroll Now For UPSC Course