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प्रश्न –‘जापान का औद्योगीकरण का स्वरुप पश्चिमीऔद्योगीकरण से भिन्न था’।इस कथन का विश्लेषण कीजिए। – 31 May 2021
उत्तर –
वस्तुतः जापान का औद्योगीकरण उस आधुनिकीकरण कार्यक्रम का हिस्सा था जो मैएजी पुनर्स्थापना के साथ आरम्भ हुआ था तथा जिसका उद्देश्य पश्चिमी साम्राज्यवाद का विरोध करना था।
जापान के औद्योगीकरण का स्वरुप:
- जापान के आधुनिकीकरण का सबसे महत्वपूर्ण पहलू उसका अपूर्व औद्योगिक विकास था। जापान में बड़े-बड़े कल-कारखाने खुले और बहुत बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन प्रारंभ हुआ। इस तरह, जापान का औद्योगिकीकरण हुआ और वह एक उद्योग प्रधान देश बन गया। आधुनिक उद्योगीकरण साम्राज्यवाद का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्ररेक तत्व रहा है।
- एक औद्योगिक देश को कई तरह की चीजों की आवश्यकता होती है। उद्योग धंधे चलाने के लिए सर्वप्रथम कच्चे माल की आवश्यकता होती है। फिर, कच्चे माल से सामान तैयार कर उन्हें बेचने के लिए बाजार की भी आवश्यकता होती है। जापान एक छोटा सा देश है और उसके औद्योगिक साधन अत्यंत सीमित हैं। अपने उद्योग धंधों के लिए वह स्वयं अपने देश में प्राप्त कच्चे माल से संतुष्ट नहीं हो सकता था; क्योंकि वह बहुत ही अपर्याप्त था। कच्चे माल के लिए वह दूसरे देशों पर आश्रित था। यही बात औद्योगिक चीजों को बेचने के लिए बाजार के साथ भी थी। जब उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा तो चीजों के खपत की समस्या आई। इन दोनों बातों के लिए जापान को दूसरे देशों पर निर्भर करना था।
- कच्चे माल और बाजार की उपलब्धि के लिए साम्राज्यवादी जीवन का प्रारंभ आवश्यक हो गया। इन दोनों चीजों की प्राप्ति बाहरी पिछड़े देशों पर राजनीतिक प्रभुता स्थापित करके ही की जा सकती थी। कोई भी देश चाहे कितना भी पिछड़ा क्यों न हो, इस तरह स्वेच्छापूर्वक अपना आर्थिक शोषण नहीं होने देगा। ऐसी स्थिति में पिछड़े देशों को अपना बाजार बनाने के लिए और वहाँ के कच्चे माल द्वारा अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए उन पर राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करना आवश्यक बन गया। राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने का एक उपाय था – युद्ध। अतएव, इस परिस्थिति में जापान को युद्ध का सहारा लेना पड़ा और इस तरह उसके साम्राज्यवादी जीवन का आरंभ हुआ।
निष्कर्ष:
इस प्रकार हम देखते हैं कि जापान के औद्योगीकरण का अनुभव पश्चिमी देशों के अनुभव से पृथक रहा तथा इसने जापान की विदेशनीति पर भी अपना प्रभाव छोड़ा।