प्रश्न – जर्मनी के एकीकरण के पश्चात् बिस्मार्क की विदेश नीति की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। – 7 June 2021
उत्तर–
बिस्मार्क न केवल एक महान राजनेता थे, बल्कि वह एक महान राजनयिक भी थे। अपने कूटनीतिक कौशल का उपयोग करके, बिस्मार्क ने जर्मन चांसलर बने रहने तक यूरोप में जर्मन प्रभुत्व बनाए रखा। स्वाभाविक रूप में बिस्मार्क की विदेश नीति की एक महत्वपूर्ण विशेषता, फ्रांस को यूरोपीय राजनीति से अलग करने का प्रयास था।
जर्मनी के एकीकरण के पश्चात् बिस्मार्क की विदेश नीति:
- जर्मनी का एकीकरण हो जाने के बाद बिस्मार्क यूरोप महाद्वीप में शान्ति चाहता था। अतः उसने सीमा-विस्तार की नीति को छोड़कर घोषणा की कि “जर्मनी एक सन्तुष्ट राष्ट्र है।”
- बिस्मार्क महाद्वीपीय दृष्टिकोण का समर्थक था। वह जर्मनी को साम्राज्यवादी नीति से दूर रखना चाहता था। वह इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रिया, रूस और इटली, इन प्रमुख राज्यों से घनिष्ठता स्थापित करना चाहता था, ताकि यूरोप में शान्ति स्थापित हो सके।
- बिस्मार्क को सबसे बड़ा खतरा फ्रांस से था। अतः वह फ्रांस को यूरोप की राजनीति में मित्रहीन व एकाकी बनाना चाहता था। फ्रांस को आन्तरिक रूप से भी निर्बल बनाए रखा जाए, इस दृष्टि से भी फ्रांस में गणतन्त्रीय व्यवस्था का समर्थन किया जाए, ताकि इस व्यवस्था के अन्तर्गत फ्रांस अपने मतभेदों का शिकार बना रहे।
- बिस्मार्क की दृष्टि में रूस का सर्वाधिक महत्त्व था। उसने कहा था, “रूस मेरी विदेश नीति की धुरी है ।”
- उस समय इंग्लैण्ड शानदार अलगाव की नीति का पालन कर रहा था। बिस्मार्क ने ऐसी विदेश नीति का पालन करना उचित समझा जिसका इंग्लैण्ड की विदेश नीति पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। अतः उसने जर्मनी की जल सेना का विस्तार करने का विचार छोड़कर थल सेना का ही विस्तार किया। उसने कहा था, “जर्मनी स्थल चूहा है, जबकि इंग्लैण्ड जल चूहा है। स्थल चूहा व जल चूहा में संघर्ष नहीं हो सकता।”
- पूर्वी समस्या में बिस्मार्क की कोई रुचि नहीं थी। वह इसे तनावपूर्ण समस्या मानता था। उसका मानना था कि जर्मनी एक संयुक्त राष्ट्र है, इसलिए उसे किसी नये क्षेत्र में विस्तार करने की जरूरत नहीं थी, अपितु जर्मन सरकार एक मात्र प्रयास जर्मनी की एकता एवं अखंडता की रक्षा होनी चाहिए।
- उसी तरह उसकी विदेश नीति की तीसरी विशेषता यूरोप में शक्ति संतुलन को बनाए रखना था। उसका मानना था कि जब तक यूरोप में शक्ति संतुलन की स्थिति बनी रहती, तब तक यूरोप में युद्ध की स्थिति टलती रहती। इसी लक्ष्य को ध्यान में रख कर उसने संधि प्रणाली की शुरूआत की तथा 1878 में बाल्कन क्षेत्र के मुद्दे पर और 1884 में अफ्रीका के मुद्दे पर आयोजित यूरोपीय कांग्रेस में अहम भूमिका निभायी।
निष्कर्ष:
इस प्रकार हम देखते है कि जर्मनी के एकीकरण के पश्चात् बिस्मार्क की विदेश नीति का मूल था, व्यावहारिक अवसरवादी कूटनीति का प्रयोग कर जर्मन विरोधी शक्तियों को अलग-थलग रखना एवं फ्रांस को मित्र विहीन’ बनाना तथा उदारवाद का विरोध करना था।
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