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प्रश्न – गांधी का कथन “अपने आप को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है, दूसरों की सेवा में खुद को खो देना”, संविधान में प्रदान किए गए मूल कर्तव्यों के संदर्भ में बहुत सटीक है। क्या आप सहमत हैं? – 8 June 2021
उत्तर –
प्रारंभ में संविधान के अंतर्गत नागरिकों के लिये मूल कर्त्तव्यों की व्यवस्था नहीं की गई थी, परंतु समय के साथ समाज में असामाजिक व देश विरोधी तत्त्वों की गतिविधियों में वृद्धि हुई, परिणामस्वरूप ऐसी गतिविधियों के प्रति नागरिकों को जागरूक करने तथा उनमें कर्त्तव्यबोध की भावना का प्रसार करने के लिये वर्ष 1976 में संविधान के भाग-4 क में अनुच्छेद-51 क के अंतर्गत मूल कर्त्तव्यों की व्यवस्था की गई।
मूल कर्त्तव्य से तात्पर्य
- मौलिक कर्तव्य राज्य और नागरिकों के बीच एक सामाजिक अनुबंध है, जिसे किसी देश के संविधान द्वारा वैध किया जाता है।
- अधिकारों के संबंध में यह भी महत्वपूर्ण है कि सभी नागरिक समाज और राज्य के प्रति अपने दायित्वों के निर्वहन में ईमानदार हों।
संविधान में वर्णित मूल कर्त्तव्य:
- संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें।
- स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें।
- देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
- हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
- प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्यजीव आते हैं, की रक्षा करें और संवर्द्धन करें तथा प्राणीमात्र के लिये दया भाव रखें।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति की ओर निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।
- 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बीच के अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना। यह कर्त्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया।
मौलिक कर्तव्यों का महत्त्व:
- गौरतलब है कि दुनिया भर के कई देशों ने ‘जिम्मेदार नागरिकता’ के सिद्धांतों को आत्मसात कर स्वयं को विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बदलने का काम किया है।
- इस संबंध में संयुक्त राज्य अमेरिका को सबसे उत्कृष्ट उदाहरण माना जा सकता है। अमेरिका द्वारा अपने नागरिकों को ‘सिटिज़न्स अल्मनाक’ (Citizens’ Almanac) नाम से एक दस्तावेज़ जारी किया जाता है जिसमें सभी नागरिकों के कर्तव्यों का विवरण दिया होता है।
- एक और उदाहरण सिंगापुर है, जिसकी विकास की कहानी नागरिकों द्वारा कर्तव्यों के प्रदर्शन के साथ शुरू हुई। नतीजतन, सिंगापुर ने कम समय में खुद को एक अविकसित राष्ट्र से एक विकसित राष्ट्र में बदल लिया।
- मौलिक कर्तव्य देश के नागरिकों के लिए एक प्रकार के अलर्ट के रूप में कार्य करते हैं। गौरतलब है कि नागरिकों को अपने देश और अन्य नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होना चाहिए।
- ये असामाजिक गतिविधियों जैसे- झंडा जलाना, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करना या सार्वजनिक शांति को भंग करना आदि के विरुद्ध लोगों के लिये एक चेतावनी के रूप में कार्य करते हैं।
- ये राष्ट्र के प्रति अनुशासन और प्रतिबद्धता की भावना को बढ़ावा देने के साथ-साथ नागरिकों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करके राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते हैं।
मौलिक कर्तव्यों की प्रासंगिकता:
- मौलिक कर्तव्यों को संविधान में शामिल किए जाने के तीन दशक बाद भी इसके बारे में नागरिकों में पर्याप्त जागरूकता का अभाव है।
- 2016 में दायर एक जनहित याचिका में यह तथ्य सामने आया कि सुप्रीम कोर्ट के वकीलों, न्यायाधीशों और सांसदों सहित देश के लगभग 99.9 प्रतिशत नागरिक संविधान के अनुच्छेद 51 ए में उल्लिखित कर्तव्यों का पालन नहीं करते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।
- वर्तमान में भारत की प्रगति के लिए मौलिक कर्तव्यों के निर्वहन की आवश्यकता पर बल देना अनिवार्य हो गया है।
- उल्लेखनीय है कि हाल की कई घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि हम देश में भाईचारे की भावना को बनाए रखने में असमर्थ रहे हैं।
- यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जब तक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों का पालन नहीं करेंगे, हम भारतीय समाज में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत नहीं कर पाएंगे।
गैर-प्रवर्तनीय होने के बावजूद, मौलिक कर्तव्य की अवधारणा भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्रों के लिए महत्वपूर्ण है। एक लोकतंत्र को तब तक जीवित नहीं कहा जाएगा जब तक कि उसके नागरिक शासन में सक्रिय भाग लेने और देश के सर्वोत्तम हित के लिए जिम्मेदारियां निभाने के लिए तैयार न हों। इसलिए संविधान से मौलिक कर्तव्यों की अवधारणा को हटाना भारत के हित में बिल्कुल नहीं है, यह आवश्यक है कि इसके विभिन्न पहलुओं में सुधारों पर चर्चा की जाए और आवश्यक विकल्पों का पता लगाया जाए।